SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ की आशा में था कि इतने में तो नयी आपत्ति आ पड़ी । यमदूत जैसे कुछ काले आदमी आकर उसे पकड़ते हैं । लोभदेव ने कहा- 'क्यों भाई ! मुझे क्यों पकड़ते हो ?' उन लोगों ने कहा - 'भाई, धीरज रख । चिन्ता मत कर। हमारे यहां रिवाज है कि तेरे जैसे कोई यहां आ पहुंचे, तो उन्हें घर ले जाकर स्नान कराके भोजन कराना । इसलिये तू चिन्ता मत कर ।' इतना कहकर वे लोभदेव को द्वीप के अन्दर ले गये। अपने घर ले जाकर तेल से मालिश करके उसे नहलाया, भोजन कराया । लोभदेव भी सात दिन का भूखा था, इसलिये डटकर खाया । वह सोचने लगा कि 'यहाँ के लोग बहुत भले लगते हैं । मेरे साथ कोई संबन्ध नहीं, फिर भी कैसा निःस्वार्थ भाईचारा ! लोभदेव पर दुष्टों के जुल्म की कोई हद ? लोभदेव का महा आनन्द महा दुःख में पलटने का कारण यह है कि वह ऐसे दुष्ट लोगों के शिकंजे में फँसा है, जो शरीर से मानव होने पर भी दिल से पिशाच जैसे हैं। उनमें दया जैसी तो कोई चीज ही नहीं। ऐसे लोगों के शिकंजे में फँसने के बाद छूटने की आशा ही कहाँ से हो ? अरे ! ऐसे लोग जुल्म बरसाने में क्या कमी रखेंगे ? लोभदेव तो यही सोच रहा था कि 'ये लोग कैसे निस्वार्थ भाईचारा रखनेवाले हैं !' इतने में तो वे लोग दौड़ते हुए 1 आये । उसके हाथ-पांव रस्सी से कसकर बांध दिये। उसके शरीर के पुष्ट भागों में से मांस काटने लगे। एक तरफ मांस के टुकड़े काट-काटकर इकठ्ठे करते हैं, तो दूसरी ओर शरीर के कटे हुए भागों से जो खून छूटता है, उसे बर्तन में इकठ्ठा करते हैं । अत्याचार की कोई सीमा ? इन्सान पाप के विचारों में हद् रखे, तो कर्म के जुल्म में हद हो । लोभदेव को अपार वेदना हो रही है। वह जोरदार चीख रहा है, परन्तु इस प्रदेश में कौन उसकी चीख या पुकार सुने ? ऐसा कसकर बांधा हुआ है कि थोड़ा भी खिसक नहीं सकता । दुष्ट तो बड़े फल में से टुकड़े काट-काटकर लेते हों, इस तरह उसके शरीर में से मांस टुकड़े काटते हैं । नरक की अपार वेदना : चमड़ी पर थोड़ी-सी खरोंच आने पर भी जलन होने लगती है, तो मांस के टुकड़े काटने पर कितनी वेदना होगी ! वह भी शरीर के एक भाग से ही नहीं, किन्तु अनेक भागों से ! वेदना की कोई हद ? फिर भी यहाँ तो इतना ठीक है कि एक बार छेदन- भेदन होने के बाद तुरन्त ऐसे छेदन-भेदन की पीड़ा नहीं सहनी पड़ती। परन्तु नरक गति में तो ऐसे छेदन होने के बाद तुरन्त पूरा शरीर अखंड़ हो जाता है । इसीलिये तुरन्त ऐसे छेदन-भेदन चालु ही रहते हैं। शरीर तुरन्त अखंड़ बन जाता है और उसमें से मांस के टुकड़े काटे जाने का शुरु हो जाता है। इस घोर जुल्म से मांस के टुकड़े काटे जाने का शुरु हो जाता है। इस १५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003228
Book TitleKuvalayamala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy