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________________ अनंत जीव होने का ज्ञान होने पर भी खुशी-खुशी अनन्तकाय का भक्षण, मांसाहार, घोर विषयान्धता... आदि नरक के द्वार हैं। इसके द्वारा नरकगति में सहन करने पड़े ऐसे पाप उपार्जित होते हैं । ' नरक में न जाने की सावधानी अर्थात् इन आश्रवों का सेवन न करने की सावधानी । एक-एक आश्रव से नरक के उदाहरण : आप रखते हैं न यह सावधानी ? ध्यान में रखिये कि ये सब आश्रव इकठ्ठे होकर ही नहीं, किन्तु इनमें से किसी एक की उपस्थिति भी नरक के कर्म बंधाने में समर्थ है । (१) मम्मण सेठ महापरिग्रह बुद्धि से सातवीं नरक में गया, (२) राजगृही का भिखारी हिंसा के रौद्रध्यान से वहीं गया । (३) चक्रवर्ती का स्त्रीरत्न घोर विषयान्धता से छठी नरक में जाता है! (४) तंदुलिया मच्छ, महा आरंभ का सेवन नहीं करता, परन्तु सिर्फ उसके विचार से नरक गति का पाथेय इकठ्ठा करता है । (५) सुभूम चक्रवर्ती अनन्तानुबंधी लोभ कषाय से सातवीं नरक में गया। (६) ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती अंध था, गूंदे के चिकने बीजों को ब्राह्मणों की आंखे समझकर उन्हें दो हाथों से मसलने की तीव्र कृष्णलेश्या में पड़ा, और दूसरी ओर अंध बना हुआ वह पट्टरानी कुरुमती के तीव्र राग में फंसकर 'हे कुरुमती ! हे कुरुमती !' करते हुए नरक में ले जाने योग्य कर्म बांधता है। (७) वसुराजा जान-बूझकर झूठ बोलने से देवता के द्वारा सिंहासन से नीचे गिराया गया तथा मरकर नरक में पहुंचा। (८) नागदत्त सेठ का बाप बकरा बना, दुकान व पुत्र को देखने से उसे जातिस्मरण ज्ञान होता है, परन्तु धर्म की सूझ नहीं । पुत्र के द्वारा न बचाये जाने व कसाई के द्वारा मारे जाने से रौद्रध्यान में चढ़कर वह पहली नरक में गया । नरक के आश्रव आज कहाँ गये ? आपको कितने उदाहरण चाहिये ? गृह-कार्य में, व्यापार में, परिवार के साथ, मौज-शौक में, बाहर के व्यवहार में या दुनिया के प्रसंगों में कोई रौद्रध्यान, कोई काली लेश्या, कोई महाआरंभ की अनुमोदना बुद्धि, महापरिग्रह की अनुमोदना बुद्धि, कोई क्रोधादि अनंतानुबंधी कषाय, तीव्र कामराग आदि लगने की संभावना पैदा होती है, वहां इसमें बिल्कुल न फंसने की सावधानी कितनी रहती है ? आज के चलचित्र व अखबार नरक के आश्रव सेवन की भरपूर सामग्री देते हैं। बारीकी से व मानसिक लगाव के विश्लेषण से जांच करने पर पता चलेगा कि यदि नरक में जाने की इच्छा नहीं है, तो इन आश्रव - स्थानों से बचने की सावधानी कितनी है ? सावधानी न हो, तो नरक की घोर वेदना से कैसे बचा जायेगा ? कर्म को शर्म नहीं है । बेचारा भद्रसेठ पूरा का पूरा विशालकाय मगरमच्छ के गुफा जैसे मुंह में दाढ़ के १५१ Jain Education International -- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003228
Book TitleKuvalayamala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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