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________________ कमाया, लेकिन इसके फलस्वरूप उस बेचारे के लिए वह उबरने के बदले डूबने का साधन बनेगा। __ यह गरीब आदमी कद्रदाँ है अतः ज्योतिषी के यहाँ दस हजार स्वर्णमुद्राओं की रकम रखकर चला गया। पुनः एक समय आया, तब ज्योतिषी ने उससे निश्चित समय बता कर साहस करने को कहा। इसके प्रबल शुभ कर्म का उदय है, इसलिए मस्तिष्क में ऐसी विचित्र स्फुरणा होती है। शुभ मुहुर्त में वह रवाना हुआ राजसभा के लिए, हाथ में डंडा लेकर वैसे हर रोज राजा के पैरों पड़ने आता था, उस तरह से आज भी निश्चित घडी पर पहुँचा राजा के पास । और प्रणाम करके उठते ही राजा के सिर परके मुकुट को ऐसा डंडा मारा कि मुकुट उछल कर दूर गिर पड़ा। यह देखने पर वहाँ शांति रह सकती भला? 'पकड़ो, गिरफ्तार कर लो हरामी को।' इस तरह बोलते हुए सिपाही दौड़ते आये, परन्तु राजा ने एक बार चमत्कार देखा है, इसलिए तुरन्त कहता है, 'अरे, ठहरो ! देखो देखो ! जरा उस मुकुट की जाँच करो।' सिपाहियों ने तलाश की और देखा तो उस मुकुट में एक पतला सँपोलिया छिपकर बैठा दिखाई दिया। सब स्तंभित हो गये । बोल उठे, 'अरे इसने सिर पर चढ़ कर यदि महाराजा साहब को डंस लिया होता तो? राजा ने देखा कि यह आदमी गजब का मालूम होता है। यह प्रवृत्ति तो कैसी उल्टी दिखनेवाली करता है ! फिर भी लाख स्वर्णमुद्राएँ पुरस्कार दिलवाती है। यह बनिया तो कद्रदाँ है न । राजा को नमस्कार कर, ज्योतिषी के पास जा कर उससे सारा वृत्तांत कह कर उसे बीस हजार स्वर्ण मुद्रा इनाम देता है। तीसरी बार उल्टा : तीसरी बार पुनः ऐसा ग्रहयोग आने पर ज्योतिषी ने उसे खबर दी । वह भी चला राजसभा में और इस बार तो राजा के समीप जा कर प्रणाम करके उसी क्षण राजा की टाँग पगड कर उसे नीचे घसीट लिया। सभा में हाहाकार मचे, इतने में तो पीछे की दीवार ही ट कर सिंहासन पर गिर पड़ी। राजा को नीचे घसीटे जाने से अपमान लगा होगा, और दुःख होने के साथ गुस्सा भी आया होगा लेकिन यह देखकर आश्चर्य के साथ छुटकारे का दम लिया होगा कि 'आह ! कैसा बालबाल बच गया। यदि ऐसे घसीटा न जाता तो दीवार ढह जाने से खोपड़ी फूट जाती, और मैं दबकर, कुचल कर मौत के मुँह में पहुँच जाता!' राजा के इस महान् लाभ के अवसर पर इनाम का पूछना ही क्या? . राजा वणिक से कहता है, 'माँगो, माँगो ! जो माँगो सो दूंगा।' . बनिया बोला, 'महाराज ! आपकी कृपा चाहिए।' 'अरे ! कृपा का क्या पूछते हो। वह तो है ही न? सच पूछो तो मुझे तुम्हारी मेहरबानी माननी चाहिए कि तुमने ऐसी हिम्मत कर के मुझे तीन तीन बार जीवनदान दिया है। बोलो ! अब मैं तुम्हारा क्या प्रिय करूँ ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003228
Book TitleKuvalayamala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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