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वहाँ से मैं बड़े घोडे व उनके छोटे बच्चे लेकर यहाँ आया और यहाँ बेचने से मुझे अच्छा लाभ हुआ।' दूसरे व्यापारी ने यहाँ से सुपारी लेकर उत्तरापथ में जाकर बेची व वहाँ से घोड़े खरीदकर यहाँ बेचकर नफा कमाया, यह अनुभव प्रस्तुत किया । दूसरे एक व्यापारी ने कहा 'मैं यहाँ से मोती लेकर पूर्व देश में गया । वहाँ उन्हें अच्छे दाम से बेचकर वहाँ से चामर खरीदकर यहाँ बेचे व अच्छी कमाई की।' तो अन्य व्यापारी ने द्वारिका जाकर वहाँ से शंख लाकर मुनाफा कमाने की बात की। एक व्यापारी ने बताया- 'मैंने यहाँ से कपड़ा खरीदकर बब्बर द्वीप में जाकर बेचा व वहाँ से मोती लाकर यहाँ बेचकर अच्छा लाभ पाया ।'
दूसरे एक व्यापारी ने सुवर्णद्वीप में यहाँ से पलाश - पुष्प ले जाकर बेचकर वहाँ से सोना लाकर व्यापार में अच्छा कमाने का अनुभव कहा, तो एक व्यापारी ने भैंसे महा चीन देशमें बेचकर वहाँ से वस्त्र लाकर व्यापार में अच्छा कमाने की बात की। किसी अन्य व्यापारी ने कहा 'मैं स्त्रिया राज्य में यहाँ से पुरुष ले उनके बदले में उनके वजन के बराबर सोना तुलवाकर लाया ।' तो एक बोला- 'अरे! ऐसा व्यापार किस काम का ? मैं तो यहाँ से नीम के पत्ते लेकर रत्नद्वीप गया और वहाँ से उनके वजन के बराबर रत्न तोलकर लाया व भारी मुनाफा कमाया।'
गया,
(रत्नद्वीप में कमाई जोरदार, परन्तु जाना कठिन :
यह सुनकर अन्य व्यापारी कहने लगे - 'भाई ! सचमुच यह तो सुन्दर व्यापार है कि नीम के पत्तों के बदले में रत्न मिले ! ऐसा व्यापार हाथ में आ जाय, फिर किसी अन्य व्यापार की आवश्यकता ही क्या ?' तब इस व्यापारी ने कहा- 'भाई ! व्यापार अच्छा तो उसे लगे, जिसे अपने प्राण प्यारे न हों। क्योंकि समुद्र लांघना मुश्किल है। दूर- सुदूर रत्रद्वीप तक जाने में महासागर के बड़े-बड़े मगरमच्छ, महामत्स्य, सूंसुमार आदि महाकाय जलचर प्राणियों का भय है, तो प्रचंड तूफान, आंधी आदि का भी भय है। इन सबको पार करते हुए ठेठ रत्नद्वीप जाना व इन भयों के बीच में से सही-सलामत यहाँ वापिस लौटना, इसमें जान का पूरा खतरा है।'
यह सुनकर सब बोले - 'भाई ! तब तो रत्नद्वीप जाना बहुत ही मुश्किल है । परन्तु दुःख के बिना सुख कहाँ ?'
लोभदेव द्वारा मित्र को रत्नद्वीप जाने की प्रेरणा :
यह बात लोभदेव के मन में बराबर जंच गयी कि 'कष्ट के बिना सुख नहीं, और यदि रत्नद्वीप का कष्ट उठाया जाय, तो लाभ का पार नहीं ।' व्यापारियों की सभा बर्खास्त हुई । घर आकर लोभदेव ने भद्र सेठ से कहा
'मित्र ! स्त्रद्वीप के लाभ के बारे में तुमने सुना न ? तो फिर रत्नद्वीप जाने का उद्यम क्यों न किया जाय ?'
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