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करके कहता है, 'आपने बहुत अनमोल शिक्षा देकर मुझ पर बहुत उपकार किया है। मैं इसे बराबर ध्यान में रखुंगा।' इतना कहकर लोभदेव घोड़े आदि लेकर परदेश की ओर रवाना
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हुआ प्रवास करते-करते वह सोपारक नगर पहुंचा । वहाँ उसने छान-बीन की कि 'इस नगर में कौन ईमानदार, पुराना सेठ है, जिससे मैं ठगा न जाऊँ ।' कोई नया-नया सेठ बना हो, तो संभव है कि लालच में पड़कर वह किसीको ठगे । पुराना सेठ होने पर भी ईमानदार न हो, तो भी दगा होने की संभावना रहती है। इसीलिये पुराने, ईमानदार सेठ को छान-बीन की, तो एक भद्र नामक सेठ ऐसा मिला।
लोभदेव भद्र सेठ के वहाँ गया । स्वयं का परिचय दिया और कहा 'मैं यहाँ व्यापार करुंगा, उसमें तुम्हें दलाली दुंगा। मुझे तुम्हारे यहाँ थोड़े दिन रुकना है।' भद्र सेठ ने एक समृद्ध, अच्छा व्यापारी जानकर उसका सत्कार किया और अपने घर में ही ठहराया । वहाँ रहकर लोभदेव ने ऊंचे दाम में घोड़े बेचे । कमाई अच्छी हुई । 'अब यहाँ से कौन-सा माल लेकर स्वदेश में लौटुं, जिससे वहाँ इससे अच्छा नफा कमाया जा सके।' इस विचार में है, वहाँ एक घटना घटी, जिसमें लालच के कारण उसका विचार पलट गया और अनजान में पतन के मार्ग की ओर मुड़ गया ।
इस संसार में ऐसी विविध प्रकार की घटनायें घटती हैं कि जिनसे इन्सान लोभ आदि के अधीन बनकर पतन के मार्ग की ओर घसीटा जाता है । इसीलिये ऐसे अवसरों पर सावधान बनना जरुरी है ।
अवसर आने पर जो सावधान न बना, वह डूबा ही समझो। आत्मा में काम- -क्रोधलोभ आदि अनादि काल से अड्डा जमाकर बैठे हैं। जीव को इनका अभ्यास अनन्त काल से है । इसीलिये तो ज्यों ही निमित्त मिला, वे हृदय में खलबली मचाने लगते हैं। फिर वहाँ कौन बचे? (१) तो ऐसे प्रसंग में आये ही नहीं, और (२) यदि आना भी पड़ा हो, तो तुरन्त सावधान हो जाय व काम-क्रोध-लोभ आदि को उठते ही रोक दे, वही भाग्यशाली बच सकता है।
हुआ ऐसा कि उस नगर में एक ऐसा रिवाज है कि " जो भी व्यापारी बाहर जाकर बड़ा व्यापार करके कमाई करके आये, अथवा बाहर से माल लाकर यहाँ अच्छी कमाई करे, वे सब इकठ्ठे होकर सभा में अपने-अपने अनुभव सुनायें, किस माल के व्यापार में कैसी कमाई हुई, यह कहे, जिससे दूसरे को उस उस दिशा में हुए कड़वे-मीठे अनुभव के बारे में पता चले ।" ऐसे रिवाज के कारण वहाँ एक सभा आयोजित हुई । भद्रसेठ के साथ लोभदेव भी उसमें गया ।
इस सभा में सब व्यापारी अपने-अपने अनुभव सुनाने लगे। उसमें एक व्यापारी बोला-- 'देखो भाईयों ! मैं छोटे घोड़े लेकर कोशल देश में गया था । वे घोड़े वहाँ बेचकर
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