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आनेवाला भी न हो, और इस तरह बोलना यह बकवास ही है न ? यह कौन बुलवाता है ? लोभ !
पगले की तरह लोभी को बोलने का भान नहीं होता । (४) लोभी को पूछो कुछ तो उत्तर देगा कुछ और ही :
आचार्य भगवंत फरमाते हैं, 'लोभ तो इन्सान को छोटे बच्चे की तरह ऐसा नादान बनाता है कि उसे पूछो कुछ और जवाब देगा कुछ। बच्चा ऐसा करता है, तब तो माना जा सकता है कि इसकी बुद्धि का विकास अभी तक हुआ नहीं, इसीलिये ऐसा कहता है । परन्तु लालच तो बडे, समझदार, परिपक्व इन्सान को भी भान बिना का बना देता है ।
लोभ की धून सवार है न ? इस धून में उसे क्या पूछा जाता है, इसका ध्यान ही नहीं रहता, इसीलिये जवाब कुछ और ही देता है । व्यापारी दुकान पर बैठा हो, उस वक्त कोई परदेशी आकर पूछे कि 'यह रास्ता कहाँ जाता है ?' तब लोभ की धून में वह कहता है - 'यह कपड़ा सस्ता है। ले जाओ।' मरीज डॉक्टर से पूछता है - 'क्या मैं यह चीज खा सकता हूँ ?' तब डॉक्टर दवा के पैसों के लोभ में कहता है - 'दवा के पैसे जल्दी भेजना।' माँ पुत्र से कहती है- 'मौसी के घर जाकर आया ?' तब पढ़ने के लोभ में पड़ा हुआ पुत्र कहता है, 'मास्टरजी लेसन बहुत देते हैं, लेकिन मैं बराबर करता हूं। (५) लोभ से इन्सान अनेक धर्म गंवा बैठता है :
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लोभ एकेन्द्रिय बनाता है। - सिर्फ एक विषय की ही लेश्या, इसीका भान । ऐसे लोग सांसारिक पदार्थों में भी भान भूला बैठते हैं, तो फिर आत्महित की वस्तु तो उनके ध्यान में आये ही कहां से? शरीर के मोह रखनेवाले को सुबह दो घंटे घूमने जाने का सूझता है, परन्तु दो घड़ी सामायिक प्रतिक्रमण नहीं सूझता । आरामपसंद आलसी को सोते रहना या पड़े रहना अच्छा लगता है, परन्तु अच्छा धार्मिक वांचन या सत्संग करना अच्छा नहीं लगता । बातों का रसिया रात को आठ बजे से ग्यारह बजे तक बातों में बैठा रहता है, परन्तु एक घंटा नवकार मंत्रका जाप नहीं करता । दुनिया में अनेकों के साथ संबन्ध रखने के लोभ में पड़ा हुआ आदमी सांसारिक काम बिगाड़कर भी अथवा काम निपटाकर किसी-किसीसे मिलने जाता है, बाजार में चक्कर मारता है, परन्तु घर में आधापाव घंटा अपनी संतानों के साथ बैठकर आत्महित की बातें नहीं करता । फिर संतानें बिगड़ जायें, इसमें भला क्या आश्चर्य ? कई प्रकार के धर्म साधने की संभावना होने पर भी लोभ के कारण वे धर्म हो नहीं पाते ।
(६) लोभ इन्सान को मछली की तरह समुद्र में घुमाता है :
लोभ के कारण समुद्र का प्रवास वारंवार करना पड़ता है। आज आप देखते हैं न कि शक्तिसंपन्न लोग थोड़ा कुछ काम आते ही विदेश दौड़ते हैं । फिर शायद उसे समाचार भी मिले कि 'इस विमान की दुर्घटना में इतने लोग गिर गये, उनका कोई पता नहीं ।' फिर
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