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समझदारी देने का दरवाजा ही बन्द रखा है।
हृदय में सच्ची समझदारी प्रवेश न कर पाये, इसके लिये कषाय दरवाजा बन्द रखते हैं।
कोणिक अभिमान व लोभ में चढ़ा, जिससे उसके मन में यह महसूस ही न हुआ कि पिता उपकारी हैं, मुझे राज्य भी देने ही वाले हैं। इसीलिये पिता को कैद किया। . अग्निशर्मा गुणसेन राजा पर क्रोध करता है, द्वेष धारण करता है। इसीलिये तो अपने गुरु कुलपति समझाने आते हैं, फिर भी समझने के लिये तैयार नहीं।
संभूति मुनि को चक्रवर्ती की ऋद्धि पाने का लोभ जगा । चित्त मुनि कितना समझाते हैं, फिर भी समझने को तैयार नहीं । वह आखिर ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती बना तो सही, परन्तु नियाणे के साथ चारित्र का माल था न? वह नियाणा भयंकर पापोंमें डूबानेवाला बना और अन्त में सातवीं नरक में जाना पड़ा ।
हृदय में कषाय उठने पर समझदारी को घुसने नहीं देते । क्या शास्त्र व गुरु हित की साफ-साफ बातें नहीं कहते? वे क्यों हृदय में नहीं उतरती ? प्रमाद का सेवन क्यों हो जाता है ? इसका कारण यही है कि श्रावक के या साधु के हृदय पर किसी लोभ, अहंकार
आदि कषाय ने कब्जा किया हो, फिर हित की बात कैसे गले उतरेगी ? - इसीलिये बार-बार यह ध्यान रखना है कि 'मैं जो कुछ बोलता हूँ, सोचता हूँ, उसमें कोई कषाय तो काम नहीं करता न?' यदि यह कषाय का काम होगा, तो शास्त्रों की हितवाणी गले नहीं उतरेगी। कषाय का जोर तो यही मनायेगा कि शास्त्र ने जो कहा है, उसकी कौन मना करता है ? लेकिन वह तो कुछ संयोगों में ही संभव है। मेरे संयोग तो अलग हैं।' यह मानने का क्या मतलब ? यही कि अपने माने हुए संयोगों में मनमानी की जानेवाली प्रवृत्ति को गलत न मानना, इसमें सम्यक्त्व रहता है या चला जाता है ?
श्रावक के लिये शास्त्रों में कहा गया है कि वह रात्रिभोजन नहीं करता, क्योंकि रात्रिभोजन अभक्ष्य है। परन्तु स्वयं को पैसे का लोभ लगा हो या शरीर की ममता ज्यादा हो, तो रात्रिभोजन-त्याग की बात गले नहीं उतरती। इसीलिये तो मजे से रात्रिभोजन होता है। हित की बात गले उतरी हो, लेकिन बाद में शायद आचरण में न आये व पाप करना पडता हो, तो कम से कम हृदय को चोट पहुंचती है, हृदय में वेदना होती है कि 'अरे अरे! मुझे यह रात्रि भोजन का घोर पाप करना पडता है ? जिन्होंने अभी तक धर्म नहीं पाया है, धर्म को नहीं समझा है, उनसे मैं कितना अधम हूँ!
ओ रात्रिभोजन करनेवालों ! बोलो, रात्रिभोजन का पाप, क्या आपको घोर पाप लगता है? आप चौंक उठेगे! 'क्या कहा? यह घोर पाप?' 'मांसाहार का पाप घोर है या रात्रिभोजन का?' ऐसा आपको लगता होगा, परन्तु ऐसा लगना चाहिये कि 'आर्य के जीवन में मांसाहार घोर पाप,' ऐसा लगे, तो पाप का भय रहेगा और पाप से बचा जा सकेगा। यदि
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