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सामान्य पाप लगे, तो यह पाप कभी छूटेगा ही नहीं। उसे तो यही लगेगा कि 'संसार में बैठे-बैठे दूसरे पाप भी करने ही तो पड़ते हैं। उनके साथ एक यह भी।' - श्रावक के आचार से विरुद्ध पापों को घोर पाप माने बिना वे पाप नहीं छूटते और आचार की पकड़ नहीं रहती।
__ आर्य के लिये मांसाहार-त्याग आचार है, श्रावक के लिए आगे बढ़कर २२ अभक्ष्यों का त्याग आचार है । अर्थात् आर्य मांसाहार करे तो घोर पाप, श्रावक कंदमूल खाये, बासी खाये, रात्रि-भोजन करे, तो उसके लिए घोर पाप है। . आर्य के लिये परस्त्री-त्याग आचार है, तो श्रावक के लिए स्व स्त्री-संतोष आचार है। आर्य परस्त्री में आसक्त बने तो घोर पाप, जबकि श्रावक स्वस्त्री में अंध बने, तो घोर पाप है। यदि इतनी समझ हो, तो तिथियों में, छ अट्ठाई में, चातुर्मास के दिनों में वह ब्रह्मचर्य पालने के लिये तत्पर हो जाय, रोज की शय्या अलग कमरे में रखे, मोहोत्पादक बुरी चेष्टायें न करे । स्व-स्त्री में भी लंपटता घोर पाप है, ऐसा समझे बिना कहाँ से बचा जाय । क्या आप श्रावक जीवन को पशुजीवन -अनार्य मनुष्य जीवन व आर्य जीवन से ऊंचे स्तर पर लाना चाहते हैं ?
तो मन में इतना निश्चित कीजिये कि 'श्रावक के पवित्र आचार से विरुद्ध दिखनेवाला छोटा-सा पाप भी घोर पाप है', तभी इससे बचने का पहला प्रयत्न रहेगा। पैसे कमाने की बात बाद में, पहले रात्रि-भोजन से बचने का प्रयास होना चाहिये। फिर शायद लोभ नहीं छूटने से रात्रिभोजन करने पर हृदय को धक्का पहुंचेगा। आंखों में अश्रु आयेंगे कि 'मैं लोभ में कैसा पापी बनता हूँ ?' फिर रात को सिर्फ थाली पर बैठकर भोजन करूं, इतनी ही बात, बाकी पानी के सिवाय कुछ नहीं लुंगा', इतनी अटलता रहेगी। इसमें भी रविवार - व छुट्टी के दिनों में तो रात्रिभोजन पूर्णतया बन्द, ऐसा कड़क पालन रहेगा।
कैसे वर्तन घोर पाप हैं ? • कहने का तात्पर्य यह है कि आचार-विरुद्ध सेवन घोर पाप लगना चाहिये । आज स्त्रियों ने वस्त्र पहनने में सारी शर्म छोड़ दी है। 'श्राविका का आचार है - मर्यादावाला वेश, इससे विरुद्ध उद्भट वेश पहनना घोर पाप है' - ऐसा वे समझती ही नहीं। नहीं तो घर से एक बार व्यवस्थित वस्त्र पहनकर बाहर निकलने के बाद भला कपडा खिसक सकता है?
सिनेमा देखने क्यों खुशी-खुशी जा सकते हैं ? श्रावक को स्व-स्त्री में भी संतोष रखने को कहा गया है। स्व-स्त्री के सामने भी बार-बार देखना नहीं, यह उसका आचार है। परस्त्री के सामने देखना आचार से विरुद्ध है। वह उसे घोर पाप ही न माने, तो सिनेमा में खुशी से स्त्रियों के हावभाव क्यों न देखेगा? सड़क पर तो दुनिया के डर से परस्त्री को एकटक नहीं देख सकता, परन्तु सिनेमा में तो किसकी रोक-टोक ? वहाँ बैठकर आंखें फाड़-फाड़कर, एकटक परस्त्री को देखे, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं । हाँ, परस्त्री सेवन में घोर पाप माना
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