________________
1
देखकर उसमें घुसा । अन्दर किसीको न देखर मैंने सोचा कि एकदम से अन्दर कैसे घुसा जाय ? वहाँ किसीके आने के इन्तजार में खड़ा रहा। वापिस बाहर निकल रहा था, इतने में तो पीछे से चौकीदार आया और कहने लगा 'चोर ! ऐसे धंधे करता है ?' और मुझे लकड़ी से दो-चार फटके लगा दिये। मैंने कहा- 'मैं चोर नहीं, परन्तु वह तो कहने लगा - 'सफाई देने की कोई जरुरत नहीं। हमारी मालकिन के कुंडल खो गये हैं, तूने ही चुराये हैं। खड़ा रह, सेठ के पास ले जाता हूं।' ऐसा कहकर ले गया सेठ के पास और कहा 'सेठजी ! कुंडल चुरानेवाला चोर यही है।' सेठ ने कहा- 'तब तो राजदरबार में फरियाद करके आता हूं । तू इसे यहीं पकड़कर रखना । अब तो इसे पकड़कर राजदरबार में ही ले जाना पड़ेगा ।' चौकीदारने फिर से दो-चार डंडे मार दिये ।'
-
तब मुझे लगा कि 'इस दोस्त को छोड़कर निकला व थोड़ा नमकीन, तीखा खाने के लोभ में पड़ा, तो कैसी सजा हुई ? हे भगवान! यह तो राजदरबार में ले जाने की बात कर रहा है । मैं तो ठहरा परदेशी ! यहाँ कौन मेरा पक्ष लेगा ? कौन है मुझे बचानेवाला ? ऐसा विचार करते हुए राजा की ओर से मिलनेवाली भयंकर सजा की कल्पना में शायद कंपकंपी छूटने लगे ! परन्तु हे मित्र ! उस वक्त तेरे वियोग की चिन्ता से मैं सिहर उठा ।'
-
मैं सोचने लगा- 'अरे अरे! सज्जन मित्र का कैसा भयंकर वियोग ! मित्र के योग में सब दुःख सहा जा सकता है, परन्तु मित्र का वियोग कैसे सहा जाय ?' तब मुझे लगा 'अरे यमराज ! तुझे मुझे एक बार मौत देनी ही है, तो अभी ही दे दे न ! विलंब क्यों करता है ? मित्र का वियोग सहने से तो मौत सहना बेहतर है, क्योंकि मौत में तो कुछ देर के लिये ही दुःख सहना होता है, मरने के बाद कुछ नहीं । यह वियोग तो न जाने कितने दिनों, महीनों या वर्षों तक जलाया करेगा। अरे अरे ! मेरा सज्जन, सरल, प्राण - प्यारा मित्र मुझे कब व कहाँ मिलेगा ?'..... ऐसा बोलते-बोलते वह रो पड़ा ।
Jain Education International
स्थाणु ने कहा - 'रो मत, अब तो मैं मिल गया हूँ न ? हां बता, आगे क्या हुआ ?'
मायादित्य ने कहा - 'बस, मुझे वहीं रोककर रखा। रात पड़ी, मुझे नींद आ गयी। नींद में संपने आने लगे, तेरे मिलन की कल्पना के ! अब मेरा प्यारा मित्र मुझे कब व कहाँ मिलेगा ? लेकिन मैं तो ऐसा फंसा हुआ था कि, मत पूछो बात ! सुबह में वहाँ एक स्त्री आयी, वह मुझे भली लगी। मैंने उससे पूछा कि - 'मुझे क्यों इस तरह परेशान किया जा रहा है।' उस स्त्री ने मुझे बताया कि 'आज से नौवें दिन यहाँ पर देवता की आराधना होनेवाली है और उसमें तुम्हारी बलि दी जानेवाली है । इसीलिये चोरी का आरोप रखकर तुम्हें पकड़ा गया है।'
-
यह सुनते ही मेरे तो होश उड़ गये । क्या मुझे जिंदा काट देंगे ? अग्नि में होमेंगे ? दोस्त ! मेरी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा। मैं सर से लेकर पांव तक कांप
१०२
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org