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________________ विवेक का अर्थ है - सार क्या है, असार क्या है, मुख्य क्या है, गौण क्या है, महान् क्या है, सामान्य क्या है, महत्त्व भी किसे दिया जाय, किसे न दिया जाय आदि की सच्ची समझ यह विवेक कहलाता है । - बड़ों का आदेश मुख्य है, अपनी इच्छा गौण है । संसार और अर्थ-काम असार है, धर्म सार है । परमात्मा और गुरु महान् है अपना आप सामान्य है । काया तथा जड वस्तुएँ और स्व- आत्मा- इन दो में से स्व- आत्मा को ही महत्त्व देना चाहिए । यह सब विवेक से होता है । अविवेकी क्या क्या करता है ? जिसमें विवेक न हो उसकी गिनती इससे उलटी होती है । वह आत्मा की अपेक्षा काया को ही महत्त्व देगा। धर्म की तुलना में रुपयें-पैसे तथा विषय- सुखों को सारभूत गिनेगा । परमात्मा एवं गुरू की अपेक्षा अपने आप को महान् समझता होगा; अनित्य विनश्वर, कंचन काया - कुटुम्ब वगैरह को मानों शाश्वत समझ कर व्यवहार करेगा । जो पर है ऐसी काया को स्व-आत्मा मान कर स्वात्मा को याद भी नहीं करेगा । अशुचि काया को पवित्र मानेगा और बार बार उसे पवित्र रखने का ही परिश्रम करेगा। इस इस तरह के अविवेकीपन से उलटेघंधे कर के जीव अनादि संसार में भटका करते हैं। पहले विवेक आए तो फिर उलटे धंधे छूट कर सत्पुरूषार्थ प्राप्त होता है । विवेक के फायदे शास्त्र पढ़ने तथा जिनवचन सुनने का उद्देश्य यह है कि आत्मा में विवेक बढ़ता चला जाय। वह पढने सुनने के बावजूद यदि विवेक न बढ़े तो मेहनत व्यर्थ हुई । ज्यो ज्यों विवेक की वृद्धि हो त्यों त्यों नये सत्पुरूषार्थ का विकास होता रहे, उसमें बल बढ़ता जाय। उससे चित्तकी - हृदय की प्रसन्नता प्रफुलल्ता पवित्रता का महान लाभ होता है; दुर्ध्यान और गलत विचार रूक जाते हैं, इससे कितने ही बडे जत्थे में अशुभ कर्मों का बँधना रूक जाता है, शुभ कर्मो का उपार्जन बढ़ता जाता है, फलत: भवांतर (अन्यभव) तो और भी कितना सारा सुन्दर उत्पन्न हो। मूल आधार में विवेक का दीपक प्रकट होना चाहिए | कुमार कुवलयचंद्र को विवेकमयी माता का आदेश- आशीर्वाद मिला, तत्पश्चात वह अपने पिता के पास पहुँचा । पिता उस की योग्यता नापने के लिए उससे घोड़ों की जातियाँ पूछते है । कुमार विद्याओं में सन्नध्द है, अठारह जातियाँ Jain Education International ८८ For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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