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________________ गिना देता है। उसका वक्तव्य लंबा होते देख राजा कहता है, "बस, अब विशेष बाद में सुनेंगे; चलो अभी सवारी - जलूस में ।' कुमार एक घोडेपर आरूढ होता है, राजा एवं अन्य राजपुरूष भी एक एक घोडे पर सवार होते है। सवारी रवाना होती है। जब वह राजमार्ग पर आती है तब कुमार का अद्भुत रूप और अश्व चलाने का सुन्दर कौशल देख कर नगरजन बहुत आकर्षित होते है | उनमें भी स्त्रियाँ यह देखने दौडती हुई कैसे कैसे भान खो देती है । कैसी कामविवश हो जाती है, प्रशंसा करती है - आदि सबका चरित्रकारने अभ्यासपूर्ण वर्णन किया है। वहाँ कवि लिखता है कि कामविवश बनी हुई स्त्रियों में से कोई नाच उठती है, कोई अपनी सखी का हाथ दबाती है, तो कोई अपने अंग, नाभिप्रदेश, छाती आदि को खुला दिखाती है, तो कोई दूसरी अपनी जाँघ को अपनी सखियों के शरीर के साथ दबाती है | ये सब काम-मद के लक्षण है | कामुक स्त्रियाँ ऐसे अपलक्षण दिखा कर भोलों को भुलाती हैं। कहते हैं न कि आज की कॉलेजकन्या इसी तरह सात-सात, दस-दस, पंद्रह-पंद्रह विद्यार्थियों को खेल कराती हैं। कुमारिकाओं एवं स्त्रियों के आजकल की वेश-भूषा, अंगप्रदर्शन और काम चेष्टाओं आदि में खिंचती हुई युवा पीढी सदाचारी एवं सात्विक कैसे बनेगी ? खून पर मन का प्रभाव - शरीर शास्त्र का कथन है कि लेशमात्रभी मानसिक विकार होने से खून उबलने लगता है। विकाराधीन रक्त का उबाल वीर्य को गलाता है, विकृत करता है, और इस तरह क्रमशः वीर्यनाश होता रहता है । तब सत्त्व कहाँ से बना रहे, या विकसित हो ? आजके सिनेमा, रेडिओगीत, विज्ञापन, समाचार पत्रों की कहानियाँ तथा किसीके दुराचार की खबरे, वगैरह वगैरह जनता के वीर्य का हनन कर कर के उसे निःसत्त्व बना रहे है । पुराने जमाने में भी भवाई, नौटंकी आदि पतन के साधन थे, फिर भी लोग इतना समझते थे कि ये आत्मा के लिए अहितकर है | अतः मानव-भव के मूल्यवान समय में इनमें फँसना मूर्खता है । आज की बात अलग है, पतन-स्थानों के बहुत बढ़ जाने पर भी उनमें कुछ भी बुराई लगती ही नहीं। फिर उससे किसीभी वक्त दूर हटने की बात ही क्या ? आज की प्रजा का पतन इस तरह पतन की साधनभूत वेशभूषा, अंगोपांग-प्रदर्शन, स्त्रीरूप दर्शन, दिल -८९ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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