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________________ निमंत्रित कर पूछा कि 'पुत्र का नाम क्या रखा जाय ?' उन्होंने कहा, "जो आपको अच्छा लगे ।" तब राजा ने कहा, (स्वप्न में चन्द्र पर कुवलय (कमल) की माला देखी है अतः नाम कुवलयचन्द्र हो; साथ ही यह पुत्र श्रीदेवी ने दिया है इसलिए दूसरा नाम श्रीदत्त हो ।' सब खुश होकर इसे स्वीकार करते हैं। धर्मी आत्मा को पुत्रजन्म के पीछे होनेवाली इस समस्त विधि पर से यह समझ लेना चाहिए कि पुत्रजन्म तो एक लौकिक संपत्ति है, और अगर उसका इस तरह से स्वागत होता है तो जीवन में जब उस उस प्रकार की विशिष्ट धर्म के लाभस्वरूप लोकोत्तर संपत्ति मिलें उस वक्त उस का किस रीति से स्वागत होना चाहिए । सुनते हैं न कि श्रेणिक राजा प्रभु महावीर की सुखशाता के समाचार लानेवाले को सुवर्णमुद्रा या अलंकार देकर खुश करते थे। | रामजी श्रावक की गुरुभक्ति :- | हीरसूरिजी महाराज के खंभात के निकट आगमन की बधाई देनेवाले आदमी को सूरिजी महाराज के भक्त रामजी गंधार श्रावक ने इनाम में चाबियों के जूडे में से कोई भी एक चाबी पसंद करने को कहा और 'उस चाबीवाली अलमारी, तिजोरी या गोदाम का माल तुम्हें मिलेगा' ऐसा कहा । उस बेचारे का भाग्य दुर्बल (सँकरा) कि खासी बड़ी चाबी चुनी; तोभी उसके गोदाम में रखे हुए रस्सों की कीमत रूप में उसे ग्यारह लाख रूपये मिले। तत्पश्चात् रामजी श्रावक ने लाखों रूपयों का व्यय करके गुरु का प्रवेश-महोत्सव किया । उसमें दान भी खूब दिया। सांसारिक जीवन में पुत्र के जन्म का भव्य स्वागत हो तो क्या धर्म -गुरु के आगमन का स्वागत भव्य रीति से न होना चाहिए ? जबरदस्त बलिदान न दिया जाय ? ऐसे किसी भी विशिष्ट धर्म की प्राप्ति के अवसर पर यथा संभव योग्य स्वागत होना चाहिए, नहीं तो वह वैसा फल नहीं देगा । बढ़िया व्याख्यान का असर क्यों नहीं टिकता ? इस पर से समझ में आएगा कि अच्छे से अच्छे व्याख्यान सुनने पर भी शिकायत क्यों रहती हैं कि हम पर इसका असर बाद में बना नहीं रहता, उसका कारण क्या ? कारण यही कि उत्तम जिनवाणी मिलने के बाद उसकी खुशी का कोई सक्रिय त्याग कर के स्वागत नहीं किया जाता | उसी तरह कोई विशिष्ट गुरूशिक्षा मिले, कोई अपूर्व शास्त्र सीखने मिले, किसी विशिष्ट स्नात्रादि पूजा या ৩৩ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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