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________________ तो उचित दान भक्ति आदि संभव नहीं । 'हाय पैसा ?' करने वाला अच्छी चीज की क्या कद्र कर सकता है ? परन्तु एक खूबी की बात है कि बेटी ब्याहनी होगी तो खूब धन खर्च करेगा, कर के आस-पास का सब शोभित करेगा, मुश्किल होती है केवल आत्महितकर प्रसंग के अथवा आत्माहितकर पदार्थ के सम्बन्ध में। यह प्रेम का प्रतिशत प्रकट करता है कि कितना प्रेम आत्महित की वस्तु का ? और कितना दुनियादारी एवं लक्ष्मी का ? जहाँ प्रेम कम वहाँ फिर दिल मिलने शामिल होने की क्या बात ? जन्मोत्सव राजा ने पुत्र जन्म के उपलक्ष्य में बडा उत्सव किया। कैदियों तथा पिंजडों में बन्द पक्षियों को मुक्त कर दिया । बाजे बजवाये । राजमहल में वारांगनाएँ गणिकाएँ नृत्य कर रही हैं। नगर में तरह तरह के विनोद - मनोरंजन करनेवाली टोलियाँ काम में लगा दी गयी हैं जिस से नगर जन मजा लूट सकें । मांगनेवालों को अच्छे से दान दिये गये, स्नेहियों का वात्सल्य किया गया । सामन्त राजा लोग, नगर श्रेष्ठि गण आदि आकर राजाको बहुमूल्य उपहार देते हैं । तो राजा भी सामने से उन्हें ऐसी भेंट देता है । तत्पश्चात् राजाने सिद्धार्थ नामक ज्योतिषी को बुलाया । वह आकर राजा का अभिनन्दन करता है और पर्षदा के उचित आसन पर बैठता है। राजा उससे पूछता है, कहो, कुमार के जन्मके समय ग्रहों की दृष्टि कैसी है ? जन्मग्रह फलादेश ज्योतिषी कहता है, “महाराज ! इस समय आनन्द संवत्सर, शरद ऋतु, कार्तिक मास, विजया तिथि, बुधवार, हस्त नक्षत्र, कन्या राशि, सुकर्म योग और सौम्य ग्रह से दृष्ट लग्न है । सभी ग्रह उच्च स्थान में हैं और पापग्रह ग्यारहें में हैं। फलतः यह पुत्र चक्रवर्ती अथवा चक्रवर्ती-समान राजा होगा ।" बाद में राजा के पूछने पर ज्योतिषीने भिन्न भन्न राशियों में जन्म होने के भिन्नभिन्न फलों का वर्णन किया । फिर राजाने उसके वचनों को स्वीकार कर उसे सात हजार रूपयों का दान दिलवाया । पुत्र का नामकरण जन्मोत्सव बारह दिन चला । बारहवें दिन बड़े ऋषि समान महाब्राह्मणों को Jain Education International ७६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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