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महान् आत्मा के आगमन के ये सब लक्षण हैं कि उससे ऐसा सब प्रवर्तित होता है। उसके विपरित अधम के आगमन में समझना । इस से यह भी सूचित होता है कि मानवता के विकास में क्या क्या समाविष्ट होता है ! ऐसा ही सब, कि दया, दान विनय, बहुमान लोकप्रियता आदि आदि जगमगा उठे । मानव बने हैं तो अब मानवता विकसित करने के लिए ऐसी सब विशेषताएँ प्रकाशित करनी होंगी, यह न भूलना । धन बढाये गये, अच्छे खानपानादि भोगते गये, रोब-सत्ता जमाते गये, अहंता में बह गये, - तो ये सब मानवता के शोभाकारी तत्त्व नहीं हैं. शोभास्पद तत्त्व तो दया, दान, विनय, भक्ति-बहुमान, लोकप्रियता आदि ही माने जाएँगे।
गर्भ वहन करने के साथ रानी को शुभ दोहद उत्पन्न होते हैं। जिन्हें राजा पूर्ण करता है।
| ८. राजपुत्र का जन्म
गर्भ की अवधि पूर्ण होने पर रानी शुभ तिथि-करण नक्षत्र में, उच्च ग्रहों के योग में एक सुन्दर पुत्र को जन्म देती है | तुरन्त ही दासी राजाके पास जाकर शुभसमाचार बधाई - देती है 'महाराज ! एक बहुत मनभावन सुन्दर समाचार देती हूँ कि महारानी साहिबाने आपको आनन्दकारी ऐसे पुत्र रत्न का अभी ही सुखपूर्वक प्रसव किया है।'
यह सुन कर राजा को इतना अधिक हर्ष उमर आता है कि वह अपने अंगोपर से हार कुंडल वगैरह आभूषण उतार कर दासी को दे देता है । महान वस्तु की प्राप्ति के आनन्द के कारण धन तुच्छ मालूम होता है अतः उसका त्याग करने में संकोच या हिचकिचाहट नहीं होती । राजा के मन 'कहाँ महान् पुत्र ? और कहाँ यह तुच्छ लक्ष्मी ?'अतः महान की प्राप्ति होने पर उसकी कद्र लक्ष्मी के दान से ही होती है- यह स्वाभाविक है ।
अधिक प्रिय क्या ? __ लक्ष्मी की कीमत घटा कर अगर महान आध्यात्मिक वस्तु की, आत्महितकारी तत्त्व की तथा उसके दाता की कीमत आंकी जाय तभी लक्ष्मी का व्यय आसान बनता है । 'यह सब प्यारा, पर मेरा पैसा मुझे ज्यादह प्यारा' यह वृत्ति रखी जाय
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