________________
जाप-स्तुति-वन्दना-भावपूर्ण कैसे बने ? ___ आराधना किसका नाम है ? (आराधना किसे कहते हैं?) जहाँ आराध्य के गुणगान हृदय में बसे हुए हो उनका उपकार, उनकी दया, उनका वात्सल्य आदि नजर के सामने तैरते हों वह आराधना है | नवकार मंत्र की आराधना करते हो न ? उसमें किसकी आराधना है ? अरिहंत देव आदि पंच परमेष्ठि की । तो उनकी इस आराधना के समय बीच बीच में मन में होता है न कि 'ये परमेष्ठि भगवंत कितने महागुणवान् ! कैसे गुणगण के भंडार । उनका कितना सारा उपकार । कैसी अनुपम उनकी दया और वात्सल्य ।' यदि नहीं, गुणगान आदि नहीं, और केवल कोरी नाम की माला ही गिनी जाती हो, निरा कोरा जाप होता हो तो वह वैसा कैसे फले ? हृदय पर वह बहुत असर भी किस तरह करे ? जाप के साथ गुणगान, उपकार स्मरण और दया, विचार से हृदय भावित हुआ हो तो जाप का जोरदार असर पैदा हो, विशिष्ट कोटि का भावोल्लास आवे । उससे पुण्य भी विशिष्ट कोटी का उत्पन्न हो; और पाप भी वैसे बड़ी संख्या में नष्ट हो ।
बस, जाप के समय खास यह बात मन में लानी चाहिए कि आराध्य के गुण उपकार - प्रभाव - वात्सल्य आदि कितने अति अनुपम । उसके विचार मात्र से दिल भर आता हो, आँखे भीग जाती हों - 'ओहो ! ओहों ! ऐसे इन का जाप मुझे मिला! स्मरण मिला !' यह अहोभाव आवे और अहोभाग्य मालूम हो।
अन्त समय के प्रभुस्मरण से जीव कैसे सुंदर सद्गति के ढेरों पुण्य को कमाई कर गये ?
कहिये कि उस स्मरण के साथ कुछ ऐसा रखकर हृदय को गद्गद् और मन के भावों को विशाल, तेजवाले और वेगवान् बनाया था इसलिए । इस जगत पर और मुझ पर आराध्य प्रभु के अनुपम उपकार है । ऐसे उपकार और कौन कर सकता है ? उनमें अनन्त गुण महक रहे हैं; जीवों पर तथा मुझ पर उनका कितना अगाध (अथाह) वात्सल्य! वाह मेरे भगवान् !' ये भाव दिल में बार बार आते रहने चाहिए; तो जाप - स्तुति - वंदना आदि खूब भावपूर्ण बनें । यहाँ राजा देवी की आराधना गुणगान आदि से कर रहा है।
राजा प्रतिज्ञा के अनुसार :
राजा को देवी के गुणस्मरण करते एक रात बीती, दूसरी बीती, तीसरी भी बीत गई पर देवी के दर्शन नहीं हुए । अब उसकी तो अपनी प्रतिज्ञा है कि तीन रात की अवधि में अगर दर्शन नही दे तो मैं अपना सर दे दूँगा । अतः दर्शन न
, दूसरी बीती, तीसरी भी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org