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उसके २०,००० रुपये दिलवाता हूँ।'
वह कहता है – 'अरे .. ! पैर ? क्या बात करते है ? फिर मैं चलूँगा कैसे ? 'बैसाखी के सहारे चल सकोगे न ?' 'वाह महाराज ! ऐसा होता होगा ? बैसाखी सो बैसाखी | साबुत पैर से जो चलना, चढना, उतरना होता है सो बैसाखी से थोड़े ही हो सकता है।'
'तो लिखो, बीस हजार में पैर भी नहीं देना है ।' अच्छा, तो एक आँख और कान दे दोगे ? रुपये ४०,००० नकद दिलाता हूँ ।'
अरे ! पर अगर एक आँख-कान दे दूँ तो काना और कनकटा हो जाऊं। फिर ठीक तरह देखना सुनना किस तरह होगा ? '
'तो सिर्फ नाक दे दोगे? रु. ५०,००० दिलाऊँगा ।' 'वाह ! तब तो नकटा बनने पर इज्जत क्या रहेगी ?'
संत ने कहा, "तो लिखो, आँख, कान, नाक चालीस और पचास हजार रुपयों में भी नहीं देना है । अब जोड़ लगाओ - १०+२०+४०+५० हजार अर्थात् कुल कितनी रकम हुई १,२०,०००. मतलब कि एक लाख बीस हजार रुपयों से भी
अधिक मूल्य का तुम्हारे पास हाथ, पैर, आँख, कान, नाक का माल है यह साबित हुआ। यह माल दबा बैठे हो; देना नहीं है और मेरे पास से ५०,००० रुपये चाहिए ? क्यो ? तुम्हारी कबूली का क्या हुआ ?
वह सोच में पड गया कि, 'क्या कहा जाय ?' संत ने कहा, 'विचार क्या करते हो ? कुछ समझते हो ? तुम्हारे पास ये बेशकीमत हाथ, पैर, आँख, कान, नाक है, उनका उपयोग करना नहीं आता
और भीख माँगने निकले हो । उत्तम कुल के होते हुए भीख माँगने में शर्म नहीं आती ? क्या भीख की हँडिया सीके चढेगी ? ऐसे भीख माँग कर कर्जा उतरेगा, और आनंद मंगल होगा? अखंड हाथ, पैर, आँखो से उद्यम करना नहीं जानते ? और खास तो यह देखो कि -
आदमी के पास सच्चा अमूल्य धन है :'तुम्हारे पास यह मानव-जीवन रूपी अमूल्य धन अभी हाथ में है, यह कितनी कीमत का माल है? साथ ही बेवकूफ पागल मन नहीं बल्कि स्वस्थ, सयाना, विचारक मन एवं बुद्धि-बल का माल है, उसकी कीमत कितनी है ? इससे भी आगे देखो कि तुम्हारे पास देव-दर्शन-भक्ति, गुरु की उपासना, दया, परोपकार, मैत्री आदि भावना, वैराग्य, इन्द्रिय-निग्रह, कषाय-शमन, और अत्यन्त सरल फिर भी बहुमूल्य प्रभु-प्रार्थना - इन सब का पुरूषार्थ करने की कितनी सारी अमूल्य
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