SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नसीब नहीं है, तथा पुण्य की राह अपना कर पुण्य बढ़ाना नहीं है, तब भाग्य की गिरती दशा में जो कुछ करे उसमें पछाड न खाय, धन आदि से बरबाद न हो तो और हो भी क्या सकता है ? इस तरह धर्म एवं धन जाने से यह लोक तथा परलोक दोनों नष्ट ही हो न ? बनावटी संत लोग ऐसी बरबादी वाला कत्ले-आम चलाते हैं। जीव को उत्तम मनुष्य-भव से भ्रष्ट कर कितने ही निम्न भवों की प्राप्ति में साथ देते है- सहारा बना देते हैं । यह संत तो सच्चा संत था, अतः उसे धर्म प्राप्त कराना था, उचित मार्ग पर चढाने का अच्छा उपदेश देना था, अतः वह युक्तिपूर्वक समझाते हुए उस से कहता है 'नहीं महाराज ! कुछ 'क्या तुम्हारे पास कुछ नहीं रहा है ?' उसने कहा, बचा तो नहीं ही, उल्टा कर्जदार बन गया हूँ ।' 'क्या झूठ बोल रहे हो ! हजारो का माल दबाकर कहते हो कि कर्ज के अलावा मेरे पास कुछ नहीं है ।' 'महाराज ! आपसे किसने कहा कि मेरे पास हजारों का माल दबा पडा है ? आपके सामने झूठ बोलूँगा ? सचमुच मेरे पास हजारो तो नहीं, सैंकडों भी नही, एक लाल पाई भी नहीं है ।' 'पैसे न हो, माल तो होगा न ?' 'जी नहीं माल असबाब सब खत्म है । कुछ बचा नहीं है । ऊपर से कर्जां हो गया है ।' संत ने कहा, 'नहीं, ऐसे नहीं । फिर भी, ऐसा करो कि जो कहीं से तुम्हारे पास निकले तो तुम्हारा वह सब मुझको सौंपना रहा। और मैं तुमको पचास हजार रुपये मिले एैसा डौल बिठा दूँगा । 'कबूल, कबूल महाराज !' उसके सहमत होने पर संत ने कहा, 'तो देखो, पहले कुछ विधि कर लें । मुझे तुम अपना यह एक हाथ दे दो ।' 'अरे महाराज ! यह कैसे दिया जा सकता है ? फिर एक हाथ से काम कैसे हो ?' ‘परन्तु मैं इसके १०,००० रुपये तुम्हे दिला दूँ ।' 'नहीं, यह नहीं होगा ।' संत ने कहा, 'तो लो, इस कागज पर लिख दो कि 'दस हजार में हाथ नहीं देना है, क्योकि यह काम आवे ऐसा माल है।' ठीक, तो फिर एक पैर दे दोगे ? 5 Jain Education International ५८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy