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________________ आपने तो बहुत सारी सरस, स्वादिष्ट बानगियाँ बनायी, क्यों इतनी सारी तकलीफ की ।' कहेंगे सही कि 'नहीं सेठ जी, नहीं, इसमें बहुत क्या किया ? आप हमारा जो करते हैं उसका तो लाखवाँ भाग भी हमने नहीं किया ।' "परन्तु थाली में सब बच रहा सो तो व्यर्थ गया न ?' ___ 'नहीं सेठजी, बात यह है कि आप को भक्ति पूर्वक परोसा इस से ही हमारे मन की भावनाएँ पूर्ण हो गयी, अतः वह लेखे लगा - काम आ गया ऐसा ही माना जाएगा। कम करें, कम परोसें तो उसमें तो हमारे हृदय के भाव कृपण रहेंगे। (हमारे हृदय की कृपणता होगी), कृतज्ञता भूल जाएगी, आपके प्रीति भक्ति का स्रोत नहीं उछलेगा । यहाँ तो भरपूर तैयारी और भरपूर परोसन - परिवेषण करे तभी हमारा मन अघाता है, हृदय में हित (प्रेम) उभरता है, हिया भावोल्लास से भरता है। __ ऐसा कुछ कहेंगे न ? रसोई में बहुत अधिक वस्तु तैयार करें उसमें अपने भाव पूरे करने का हेतु बताएँगे? या सेठ का पेट संपूर्णतः भरने का ? क्या ऐसा कह सकेंगे - 'सेठजी, हम तो समझते थे कि आप बहुत खाएँगे, इसलिए इतना सारा बनाया और परोसा ।' नहीं कहेंगे - क्यों ? इस में अविवेक है, जंगलीपन है । बस, तो फिर देवाधिदेव के लिए ऐसा विचार क्यों आता है कि उस सेठ ने जितना खाया उतना काम का, उसी प्रकार प्रभु के अंगपर चढ़ा उतना ही काम का, बाकी जमीन पर बिछाया जाय सो निकम्मा-बेकार ? । सेठ के लिए और भी कितनी विविध सजावटे करेंगे ? घर कैसा सजाएँगे ? दो चार अच्छे रिश्तेदारों को सेठ के स्वागतार्थ कैसे बुला रखते है ? यह सारा एक सेठ की भक्ति के लिए, तब क्या प्रभु भक्ति के लिए ऐसा कुछ नहीं करना? अगल बगल कोई साज सज्जा नही ? पूजा में किसी को साथ नहीं ले जाना? राजा की पूजा के पूर्व की विधि भी भूलने योग्य नहीं । राजा दृढवर्मा को देवी की आराधना का एक महत्कार्य करना था तो उसे प्रारंभ करने के पहले दान-उपहारादि दिये ! यह सब किसलिए करना भाई ? कारण यह है कि - ___ कोई भी महत्कार्य पार उतारना हो तो उसकी साधना सुन्दर द्रव्य-क्षेत्र-कालभाव की अनुकूलता के बीच होनी चाहिए । _ 'द्रव्य' अर्थात् साधना में उपयोगी वस्तुएँ, वे यथा-संभव उच्चकोटि की होनी चाहिए, जैसे पूजा की साधना में सुन्दर पुष्प आदि सामग्री; तप की साधना में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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