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________________ भाग्य के आधार पर क्या ? | पैसे कमाना, परिवार मिलना, आबरू बचाये रखना, दूसरों को भी अपनी बात पर आकर्षित करना आदि सब बातें भाग्य के अधीन हैं । भाग्य यदि यह सब होने के सामने विपरीत हो, तो चाहे जितनी मेहनत करो, कुछ हाथ नहीं आएगा। विद्याओं के बल पर, सेना-शस्त्र आदि के आधार पर रावण बहुत लडा, परन्तु भाग्य विपरीत था, तो लक्ष्मण को मारने के लिये फेंका गया सुदर्शन चक्र, लक्ष्मण को मारने के बदले, उसके आगे सेवक जैसा खडा रह गया और लक्ष्मण ने वह चक्र रावण पर फेंका, तो जो चक्र पहले रावण का था, वही चक्र रावण का गला काटकर लक्ष्मण के पास आकर खडा रह गया ! बिगडा हुआ भाग्य साधन सामग्री, होशियारी, मेहनत या ढेर सारे गुणों को भी नहीं गिनता। सीताजी अति गुणवती थी । उनका सतीत्व सौ टंच के सोने जैसा था । फिर भी भाग्य फिरा, तो वे सब गुण धरे रह गये, और 'सीता तो रावण के घर रहकर आयी है, इसलिये असती है, ऐसा कलंक उनके सर पर चढ गया। उनके गुणों व योग्यता की कोई शर्म भाग्य ने नहीं रखी । गुमान या खेद कैसे रोका जाय ? इसीलिये मनुष्य को इस बात का विचार करना है कि भाग्याधीन बातों में पैसे, होशियारी आदि का मद किस काम का कि 'मैं ऐसा कर हूँ ?' इसी तरह कुछ उल्टा होने पर भी खेद किस बात का कि 'हाय ! इतने पैसे व इतनी होशियारी होने पर भी मुझे यह सब क्या देखना पड रहा है ? ' वहाँ तो एक ही विचार चाहिये कि पैसे आदि का अभिमान बुरा है । भाग्य का चक्र फिरते ही सब कुछ साफ ! इसी प्रकार अदृश्य भाग्य के योग से कुछ उल्टा हो जाय, वहाँ खेद करना भी बेकार है । 'भाग्य की राह स्वतंत्र है, परन्तु मेरे पैसे, होशियारी या गुणों के काबू में कुछ नहीं | चलने दो चले वैसा, हमें तो सिर्फ देखा करना है कि क्या होता है ! सही काम तो नया अच्छा भाग्य कमाने के लिये सुकृतों में लग जाना है।' सीताजी की विचारधारा :___ सीताजी ने क्या किया ? पति व्दारा जंगल में छोडे जाने पर भी विलाप नहीं किया कि 'हाय ! मैं महारानी और मेरी यह दशा ? मैं गुणवती हूँ और पति को मेरे सतीत्व पर पूर्ण विश्वास होने पर भी वे ही मुझे इस स्थिति में रखें ?' नहीं, ऐसा कोई खेद नहीं । उन्होंने तो एक ही विचार किया कि 'इसमें मेरे भाग्य का - ३७ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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