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है । राजा एक लघु बाल में यह सब देखकर चकित हो उठता है।
छोटा-सा भी वज्रकण वजनदार :
वहाँ मंत्री कहता है, 'देव !इसमें भला आश्चर्य की क्या बात है? एक छोटासा भी अग्निकण क्या घास के बड़े ढेर को जलाने के लिये समर्थ नहीं ? छोटासा भी वज्रकण भारी वज़न के स्वभाव वाला होता है न ? बस, इसी तरह महायशस्वी कुल में जन्मे हुए राजपुत्र सत्त्व, बल, मान, गौरव आदि गुणों के साथ बडे होते हैं, यह तो स्वभाविक है और महाराज! दूसरी बात यह भी है कि ऐसे जीव सामान्य पुरुष नहीं होते परन्तु देवलोक से च्यवन पाकर बाकी का सुख भोगने के लिये यहाँ जन्म लेते हैं।" ___ मंत्री जगत में विशिष्ट वस्तु की अलग खासियत होने की बात कहता है । यदि यह जड़ पदार्थों में भी हो, तो चेतन आत्माओं में भी क्यों नहीं होगी ?
मंत्री के वचन से राजा संतोष पाता है और बालक की महानता देखकर इसे कहता है,
'पुत्र महेन्द्रकुमार ! तू मुझे अपना शत्रु मत मानना । जब से तू यहाँ आया, तब से तुझे देखकर तो तेरे पिता भी मेरे मित्र बन गये हैं, और तू मेरा पुत्र बना है । इसीलिये अब बिल्कुल घबरा मत | शत्रुत्व की कल्पना छोड़ दे और यह भी तेरा-अपना ही घर मानकर आनन्द से रह | सब कुछ ठीक हो जाय, ऐसा मैं करूँगा।' ऐसा कहकर राजा ने बालक के गले में रत्न की कंठी पहना दी और मंत्री से कहा
___ 'देखो ! तुम्हें इसकी ऐसी संभाल रखनी है कि इसे इसका पूर्व का घर याद ही नहीं आये । ऐसा सब कुछ करना कि पुत्रहीन ऐसे मेरा यही पुत्र हो ।'
शत्रु पुत्र से डर क्यों नहीं ? |
गुणज्ञ राजा की वस्तु की कद्र देखो । दुश्मन का बच्चा है, इसलिये दुःख देनेतिरस्कार करने योग्य या बेचारा मानकर उपेक्षा करने लायक नहीं, किन्तु स्वयं को पुत्र नहीं है, तो पुत्र जैसा बनाने योग्य तक मान लेता है ।।
प्र. तब डर नहीं लगता कि 'यह तो दुश्मन का पुत्र है । कल उठकर कहीं दुश्मन पक जाय तो?
उ. नहीं, वह पुत्र के लक्षण पलने में ही देखता है । इस बच्चे के वचन कितने सुव्यवस्थित और समझदारी भरे हैं । इसे प्रेम से अच्छी तरह से पाल-पोसकर बड़ा
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