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रोना आ गया । उसका रुदन देखकर राजा का दिल भी पिघल जाने से उसकी आँखों में भी आंसू आये, रानियों व मंत्रियों की आखें भी भर आयीं । राजा अपने उत्तरीय से बालक के आंसू पोछते हुए कहता है- 'बेटे ! तू रो क्यों रहा है ? घबरा मत !' राजा कोमल हाथ से बालक का मुख वस्त्र से पोंछता है और सेवक द्वारा लाये गये जल से उसकी आँखें धोता है |
राजा को विचार आता है कि ' यह बालक यहाँ आया, तब तक तो गंभीर था, फिर यकायक रो क्यों पड़ा ?' अतः राजा सभा में सवाल पूछता है
'है सुरगुरु आदि मंत्रियों ! कहिये, यह कुमार मेरी गोद में क्यों रोने लगा ?'
एक मंत्री कहता है, 'देव ! इसके माता-पिता के वियोग से यह खिन्न हुआ, इसीलिये शायद रोया होगा ।'
दूसरा कहता है- 'महाराज ! आपको देखकर इसे अपने माता-पिता याद आ गये होंगे कि वे कहाँ होंगे ? किस हालत में होंगे ? इस दुःख से ही इसे रोना आया होगा ।'
. ऐसे सब जवाबों से राजा को संतोष नहीं हुआ । क्योंकि वह तो यहीं देख रहा है कि वैसे तो यह रोते-रोते ही आया होता, परन्तु आया था एक वीर की अदा से, तो अब यकायक कैसे रो सकता है ? इसलिये सीधा बालक से ही पूछता है
'पुत्र महेन्द्रकुमार ! तू ही बता, रोना क्यों आया ?' अब कुमार का गंभीर जवाब सुनिये । वह कहता है- 'देखिये तो सही, विधि का विचित्र खेल कि ऐसे इन्द्र जैसे पराक्रमी पिता का पुत्र हो हुए भी मुझे आज शत्रुजन की गोद में रहकर शोचनीय दया का शिकार होना पड़ा है। दूसरे का दयापात्र बनना पड़ा है । मुझे स्वयं पर ही गुस्सा चढ़ा है, जिससे मेरा अश्रुप्रवाह में रोक नहीं सकता हूँ ।' हम शत्रु की गोद में ?
बालक की गंभीर विचारधारा पर विचार करने जैसा है, सिर्फ कहानी में ही मत अटक जाईये ! श्रवण तो उसका नाम कि जिसमें से सार ग्रहण किया जाय । यहाँ पर सार है कि, हम अनन्त पराक्रमी श्री महावीर प्रभु की संतान और मोक्षपुरी के वास के अधिकारी है, और आज ? दुश्मनभूत संसार व संसारियों की गोद में बैठे है ! दयापात्र बने हैं। ऐसे बने हुए अपने आप पर हमें शर्म आनी चाहिये, गुस्सा आना चाहिये कि 'मैं कैसा नालायक ? कैसा बेशर्म व निर्बल कि शत्रु की
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