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________________ | ३. कुवलयमाला कथा का प्रारंभ जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में विनीता नगरी है, जहाँ दृढवर्मा नामक राजा राज्य करता है । अति वैभवशाली व सत्ताधीश होने पर भी सरल, मृदुभाषी, दक्ष, दाक्षिण्यता संपन्न, दयाल आदि अनेक गुणसंपन्न है । उसे प्रियंगश्यामा नामक पटरानी है । वह भी इतनी गुणवती है कि राजा भी उसके पक्षपात वाला है । परन्तु गुण से, न कि रूप सौन्दर्य व काम विलास के कारण; गुणवानों का आकर्षण गुणों की ओर ही होता है। राजसभा में नयी घटना : एक बार ऐसा हुआ कि राजसभा भरकर राजा बैठा है | वहाँ द्वारपाल आकर नमस्कार करके विनंती करता है - 'महाराज ! यह शबर सेनापति का पुत्र सुषेण आपकी ही आज्ञा से मालवा के राजा को जीतने के लिये गया था, वह लौट आया है व आपके चरण के दर्शन का सुख मांगता है | राजा के सेवक जन कैसी विवेक युक्त व विनयमय भाषा का प्रयोग करते हैं और कितने संबद्धभाषी होते हैं । सीधे बिना किसी संबन्ध या संदर्भ के यों नहीं कहते कि 'सुषेण आया है। क्योंकि राजा का संबन्ध तो बहुतों के साथ होता है। यदि सीधा ही कह दे तो राजा विचार में पड़ जाय, सोचने लगे कि कौन सुषेण?' 'क्यों मिलना चाहता है ?' इसलिये भूमिका बांधकर कहता है.... सेनापतिपुत्र, जिसे आपने विजय के लिए भेजा था....' द्वारपाल ऐसी भी भाषा भी नहीं बोलता कि 'सुषेण को मिलना है ।' राजा जैसे बड़े आदमी को कोई छोटा आदमी ऐसे ही कैसे मिल सकता है ? वह तो विनय-विवेक भरे शब्द बोलता है कि आपके चरणों में दर्शन का सुख चाहता है ।' राजा ने हुक्म दिया कि 'उसे प्रवेश करने दिया जाय ।' सुषेण ने सभा में प्रवेश किया, और राजा के करीब आकर राजा को नमस्कार करता है । बड़ों के पास जाने पर यह नमस्कार की विधि है । आपकी संतानों को बचपन से यह बात सिखायेंगे, तो वे अच्छे विनयवान के रुप में तैयार होंगे। राजा ने उसे देखा, तो कैसा दिखा ? छाती पर बड़ा घावं है, जिस पर लंबी सफेद रेशमी पट्टी बांधी हुई है और मुख कमल जैसा खिलता हुआ शोभित हो रहा है, - २६ । २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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