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वे दिग्गज की तरह दिल से ऊँचे और सतत दान बहाने वाले होते हैं। हाथी के गंडस्थल से मद झरता है, उसे दानश्री कहते हैं, जबकि सुजन धन-दान सहायदान - सुवचनदान आदि करने वाले होते हैं । विशेषता यह है कि हाथी मद से उन्मत्त
और श्यामसुख बनते हैं, जबकि सुजन मदोन्मत्त और श्यामसुख नहीं होते । दान देकर भी वे उन्मत्त या अभिमानी नहीं होते कि, मैं कैसा दानी ?' अथवा 'हाय मेरे पैसे गये!' ऐसे निराश बनकर श्याममुख नहीं होते । परन्तु 'धन्य सुकृत ! ' ऐसे उज्ज्वल प्रसन्न मुखवाले होते हैं ।
सुजन मोती के हार जैसे सहज निर्मल और बहुत गुणों के सार वाले होते हैं। विशेषता यह है कि मोतियों को हार के बीच में छिद्र होते है, जब कि ये छिद्ररहित होते हैं।
सुजन समुद्र की तरह गंभीर स्वभाव वाले और महान पदार्थों से भरे हुए होते हैं । गंभीर समुद्र की गहराई नहीं मापी जा सकती । वह भरतीमें अपने रत्न बाहर नहीं उछालता, उसी प्रकार सुजनों की गंभीरता भी ऐसी कि उनके दिल की गहराई मापी नहीं जा सकती, वे अपने गुणों को अपनी वाणी से बाहर नहीं निकालते ।
समुद्र में रत्नादि महान पदार्थ होते हैं, उसी प्रकार सुजन में गुण,सद्भावनायें आदि महान पदार्थ होते हैं। फिर भी विशेषता यह है कि जब समुद्र में आवर्ती के भँवर चलते हैं, उसके कलरव से पास वाले को ऐसा ही कष्ट होता है, जैसे कि पास रहे हुए किटकिट करते हुए दरिद्र कुटुंब के कारण पडौसी को कष्ट होता है। जब कि सुजनों में न तो माया के भँवर चलते हैं और न ही वे बेकार की किटकिट करते हैं।
कवि ने सुजनों की कितनी सुन्दर पहचान करायी है ! ऐसे सुजनों के सामने देखकर ही इस चरित्र की रचना की जाती है ।
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