SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बच्चे को समझाना चाहिए कि 'बुरा काम करें तो कितना अधिक पाप लगता है ? पकड़े जाने पर कैसी कैसी आफतें आती है,कैसी सख्त सजा मिलती है आदि । इससे उसे बुरे काम करने का लोभ ही नहीं रहेगा । यह करना है ? नहीं; रात होने पर थके हारे समवयस्कों के साथ गप्पे लगाना हैं; अथवा बाहर भटकने जाना है, किन्तु मातापिता का फर्ज़ समझना नहीं हैं। और अपने आश्रय में रहे हुए अबोध, नासमझ बालकों का विश्वासघात हो उसकी परवाह नहीं है | तब क्यों हर रोज प्रेम पूर्वक पास बिठाकर उन्हें हितशिक्षा दोगे? आप जैन संस्कृति का लोप कर रहे हैं इस बात का आपको भान नहीं है ! उस औरत ने उस दुष्ट आदमी के कुत्सित भाव का विरोध नहीं किया, अतः वह आदमी अब आगे बढ़कर कहता है - ___ 'तेरा पति चंड हो चाहे सौम्य, तुझे मुझसे मिलना ही चाहिए अन्यथा नरहत्या लगेगी।' मतलब ? यही कि 'तू न मिली तो मैं आत्महत्या कर लूँगा ।' क्या ? आत्महत्या करेगा वह ? बिल्कुल नहीं । सिर्फ मुँह से बोल कर दूसरे को डराना | कोई मरता वरता नहीं । एक अनुभूत दृष्टांत सुनाता हूँ | एक कुलटा स्त्री का दृष्टांत : एक स्त्री हमेशा अपने पति को हैरान करती थी, क्यों कि वह स्त्री खरीद कर लाई हुई निम्न जाति की थी । बेचारा पति रोजगार - मजदूरी करके शाम को देर से घर आता । अभी वह खाना शुरू करे उससे पहले वह कलह शुरू कर देती 'तुमने यह नहीं किया और वह नहीं किया; फला चीज नहीं लाये और फलां चीज नहीं लाये । लो, तुमसे ब्याह कर हमने क्या सुख पाया ?' फिर तो और दिन बीतने पर कलह क्लेश में आगे बढ़ते बढते वह कहने लगी कि, “यदि तुम ऐसे ही चलाओगे तो मैं जल मरूँगी ।" यह उसे समझाता परन्तु वह चुप नहीं रहती ।" पति ने देखा कि “यह क्लेश इस तरह नहीं मिटेगा, और यह कोई जल मरने वाली नहीं है।" __ अधिकतर व्यर्थ ज्यादह बोलनेवाले वैसा करते नहीं है, और करनेवाले बहुत बोलते नहीं। यह बात समझ कर कलह बन्द करने के लिए एक दिन वह बाहर से यह निश्चित करके घर आया कि अब क्या उपाय करना चाहिए । फिर जब उस स्त्री का यह पुराण शुरू हुआ कि 'नहीं तो मैं जल मरूँगी, जल मरूँगी' तब उसने चूल्हे में से अंगारे तवे पर रखे और तुरन्त उसकी ओर बढ़ कर उसके सिर पर डालने का २२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy