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छोड़ दो, जिद मत करो ।
भवितव्यता का रहस्य
(iv) जीव का मोक्ष अमुक वक्त पर नियत - निश्चित है । ऐसा ज्ञानी सर्वज्ञ ने ज्ञान में पहले से देखा है । अर्थात् ऐसी ही नियति-भवितव्यता ज्ञानी ने देखी है, तो भी उन्होंने ही फिर मोक्ष के लिए धर्म-पुरुषार्थ करने को फर्माया है । कहा है, 'पुरुषार्थ जितना प्रबल रखोगे उतने जल्दी मोक्ष में जाओगे । पुरुषार्थ में पिछड़ कर प्रमाद में पड़ जाओगे तो संसार में अधिक भटकोगे ।' ऐसा कहा है न ? क्यों भाई ! उन्हें ऐसा कहने की क्या आवश्यकता ? वे तो जानते ही हैं कि यह अमुक काल में ही मोक्ष में जानेवाला है । तब क्या प्रबल धर्म-पुरुषार्थ करने से जल्दी मोक्ष में जाएगा ?
फिर भी इसका उपदेश क्यों दिया ? महावीर प्रभु क्यों बारबार गौतम स्वामी महाराज से कहते थे कि “समयं गोयम । मा पमायए, हे गौतम! एक समय का भी प्रमाद न करना ।' क्या भगवान् नहीं जानते कि 'यह गौतम इस भव के अंत में निश्चय मोक्ष में जानेवाला है ?' अवश्य जानते हैं, फिर भी जब वे यह अपेक्षा रखते हैं कि गौतम प्रमाद न करे, और तदनुसार कहते हैं तब उसके पीछे कोई तो रहस्य होना ही चाहिए न ?
रहस्य यही है कि ज्ञानी इस भव के अंत में गौतम का मोक्ष जो निश्चित देखते हैं, सो अपने उपदेश से और गौतम के अप्रमाद के पुरुषार्थ से ही मोक्ष होना देखते हैं । कर्म का बंध जैसे प्रमाद से होता है वैसे क्षय अप्रमाद रखे तभी होता है । मोक्ष अर्थात् सर्व-कर्म-क्षय, यह अप्रमाद से ही होता है, और अप्रमाद पुरुषार्थ से साध्य है । क्योंकि जीवको प्रमाद का अनन्त अभ्यास है । अतः जीव चाहकर जान बूझ कर अप्रमाद रखे तो ही हो सकता है । अपने प्रयत्न के बिना भवितव्यता
ही अप्रमाद नहीं रखवा सकती, इसलिए ज्ञानी ऐसे प्रयत्न का उपदेश देते हैं । मोक्ष निश्चित होने की बात में पुरुषार्थ प्रयत्न करने की बात गर्भित समाविष्ट
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है।
मोक्ष मार्ग का उपदेश क्यों दिया ?
इसी हेतु से सच्चा मोक्षमार्ग बताने का ज्ञानियों का उपदेश है, नहीं तो वे किस लिए बताएँ ? लेकिन ऐसा उपदेश इस अपेक्षा से है कि 'सच्चा मोक्षमार्ग न जानने के कारण जीव अज्ञान में भटकते हैं, असत् पुरुषार्थ करते हैं, तथा संसार में भ्रमण करते रह कर मोक्ष नहीं पा सकते ।' 'यदि उन्हें यह बताया जाय तो वे इसका पुरुषार्थ करें, और कर्म बन्धन से बचकर कर्म का क्षय कर के मोक्ष में जाएँ ।'
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