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________________ और दूसरा हिस्सा ऐसी बुरी आत्मदशा वाला पति देनेवाले पत्नी के ही पाप का है । साथ में यह भी कि पति जो ऐसी बुरी आत्मदशावाला है सो इस (स्त्री) के कर्मों से नहीं किन्तु वह तो पति की अपनी स्वतंत्र स्थिति के कारण; अपने पाप से और तदुपरान्त यहाँ के असत्पुरूषार्थ से दुर्दशावाला है । जीव-जीव के कर्म भिन्नः हरएक जीव के अपने कर्म और संस्कार अलग अलग हैं या नहीं ? हैं ही । उसी तरह पुरूषार्थ भी भिन्न भिन्न रहेंगे ही। इसी हिसाब से यहाँ पति चंडसोम पत्नी पर जो ईष्यालु बनता है तो पति की अपनी ही कर्म-संस्कार की पूँजी और पुरुषार्थ के कारण । कर्मों के बावजूद समझदारी से रक्षा होती है: इसपर से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें ऐसे ऐसे बाहर के निमित्त के कारण क्रोध, अभिमान, रोब, रोष, आदि जाग पड़ते हों तो मुख्यतः हमारे अपने ही कर्मसंस्कारों के कारण। किन्तु यदि इस बात को समझकर उन क्रोध आदि पर बाह्य उधम मचाने का पुरूषार्थ न करें तो बच सकते हैं। अन्यथा ऊन कलुषित भावों के जाग्रत होने पर उलटा ढंग अपनाते हो और गलत विचार करते हों तो उसमें हमारे ही असत्पुरूषार्थ का कसूर है । प्रo हमारे क्रोध में सामनेवाले का दोष क्यों नहीं है ? उ० इसीलिए कि हम जिस प्रसंगमें क्रोध करते हैं वैसे या उससे भी उग्र प्रसंग में विचारशील उत्तम पुरूष क्षमा, समता और करूणा धारण करते हैं न ? यदि सामने उपस्थित निमित्त के ही आधार पर सब कुछ घटित होता हो तो उन उत्तम पुरुषों को क्रोध क्यों नहीं आता ? वे किस तरह क्षमाशील रह सकते हैं ? इसलिए सच ( असल) बात यह है कि और उस हमारे कलुषित भाव हमारी ही कर्मसंस्कार की पूँजी पर ही आधारित हैं निःसन्देह उस पर और गलत विचार, अंटशंट बकवास- बडबडाहट, प्रकार की असत्प्रवृत्ति के पुरूषार्थ करें तो और अधिक बिगडते हैं। परन्तु यह बिगाड भी मुख्यतया सामनेवाले के निमित्त नहीं, बल्कि बिगाड़ हमारी अपनी अधम आत्मदशा के घर का है । Jain Education International १९० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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