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________________ है ।' अरे ! अभी यह क्या ? वैसे भी खाने के सामान्य दिन भी किसी बार ऐसा काम में व्यस्त हो गये कि १० बजे तक कुछ खाया-पिया नहीं फिरभी कोई उदासी नहीं, तो आज क्यों ? कहो कि उपवास अर्थात् 'आज प्रिय भोजन नहीं मिलेगा' इस की कल्पना मनुष्य को मारती है । खाना बुरा कहाँ लगा? लगा होता तो आज यह पाप टलने का (न होने का ) हर्ष न होता ? बात यह है कि - पाप को जहर माने बिना धर्म के प्रति सच्चा आदर उत्पन्न नहीं होता। पाप की कीमत न आँकी जाय तभी धर्म की कीमत आँकी जाती है । (पाप को महत्व न दिया जाय तो ही धर्म को महत्व दिया जाता है ।) पाप निकम्मा मालूम हो तभी धर्म मूल्यवान् लगता है। करो ! करो ! इस जीवन में यह विशेष करणीय है, कि पापों को जहर मानते जाएँ, अर्थहीन मानते जाएँ, और हो सके उतना पापों का परित्याग करते जाएँ। फिर देखो, भगवान् और धर्म सचमुच मधुर लगेंगे; उनमें जी लगेगा। चंडसोम की पत्नी पर ईर्ष्या : उक्त चंडसोम के माता-पिता जीवन के पिछले हिस्से में गृहवास के पाप-प्रपंच से छुटने तीर्थयात्रा को निकल पड़े । यहाँ चंडसोम घर का कर्णधार बना । माँबाप ने उसके साथ जिस सुशील ब्राह्मण कन्या नंदिनी का विवाह किया था उसको - चंडसोम की सुखमय स्थिति न होने के कारण - ऐसा अच्छा खान-पान नहीं मिलता कि अंग हृष्ट-पुष्ट बनें और ऐसे सुन्दरता देनेवाले वस्त्र-अलंकार (गहने-कपड़े) भी नहीं मिलते जिनसे वह अपनी सुशोभित वेश-भूषा बना सके, तो कोई राग-रंग करने को भी कुछ नहीं हैं । ऐसा होते हुए भी उसके मुखमंडल पर ऐसा लावण्य झलकता है कि वह गाँव के युवकों की नजर का शिकार बन जाती है | वह बेचारी जरा गाँव के बाहर जाती है कि युवा पुरुष उसकी ओर एक टक ताकते फिरते हैं। स्वयं सुशील है, अतः सामने देखती तक नहीं; पर-पुरुष पर दृष्टि नहीं करती, फिर भी युवकों का उस पर बार बार दृष्टि डालना और दर्शन से पुलकित होना देखकर चंडसोम बेचैन हो उठता था । उसे पत्नी पर ईर्ष्या-असूया जाग उठती है | पुण्य की विचित्रता : है कोई कसूर इसमें पत्नी का ? किन्तु कमजोर पति औरत के आगे सूरभा बनता है । पत्नी पर बल दिखाता है । चंडसोम खुद तो उन युवकों को रोक नहीं सकता, डाँट नहीं सकता, फलतः पत्नी से जलता है । बेचारी का और कोई कसूर नहीं; १८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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