________________
समयानुसार संक्षेप में कथा को देखें ।
क्रोध पर चंडसोम का चरित्र
दुष्कृत्य की दुहरी मार :कांची नामक देश है । उसकी राजधानी का नाम कांची है । उसके पास रगड़ा नामक एक गाँव है । उस गाँव में सुशर्मा नामक एक ब्राह्मण रहता है-बेचारा जन्म से दरिद्र, उस पर स्वभाव का क्रोधी ! ऐसा क्यों ? कहो कि दरिद्रता लानेवाले पूर्वकर्मों के साथ पूर्व के कुसंस्कार । तो इसके पीछे कैसे दुष्कृत्य किये होंगे? उसके फलस्वरुप यदि ऐसे लाभांतराय आदि कर्म उपस्थित होते हैं तो साथ ही उन दुष्कृत्यों में मिले हुए कषायों के संस्कार भी उपस्थित होंगे ही न ? ये संस्कार क्या हैं ? वे भी ऐसे मोहनीय कर्म ! उसका परिणाम क्या ? यही कि एक तरफ वे अन्तराय कर्म उदय में आते हैं तब दूसरी तरफ यह कषाय-मोहनीय कर्म भी साथ साथ उदय में आता है । अतः एक ओर धन के लाभ का अन्तराय अर्थात् दरिद्रता और दूसरी ओर कषाय का जोर | दुष्कृत्य-सेवन की दुहरी मार इस तरह पड़ती है, - दुःख और पापिष्ठता। कलहखोर न बनना हो तो क्रोध का दमन करो :
सुशर्मदेव-ब्राह्मण दरिद्र भी था साथ ही चंड प्रकृति का क्रोधी था । वह कई बार क्रोध के मारे दूसरों से लड पड़ता । क्रोध का यही परिणाम होता है । झगडालू न बनना हो तो मूल में क्रोध को ही दबाना चाहिए | उसे अगर सर उठाने दिया तो फिर वह चैन नहीं लेने देगा । इसीलिए तो मन मजबूत बनाकर क्षमा-समतासौम्यता का अभ्यास करना चाहिए (आदत डालनी चाहिए) जिससे लडाई-झगडे के अवसर ही उपस्थित न हों । पुत्र चंडसोम :
उस ब्राह्मण के दो पुत्र, एक पुत्री । इनमें बड़े पुत्र का नाम भद्रशर्मा । वह इस गुस्सैल बाप की ही सन्तान न ? उस पर साथ में अपने भी ऐसे कर्म लेकर आया है कि वह बचपन से ही बहुत गुस्सैल, चंचल, (अस्थिर), असहिष्णु, घमंडी, निष्ठुर वचन और निष्ठुर मन वाला | लडकों के साथ खेलते समय निष्ठुरता, घमंड और असहिष्णुता से उन बेचारों को पीटता था । अतः लडकों ने उसका नाम चंडसोम रखा था । ऐसे नाम से उसे कहाँ घबराना या शर्माना था । बेशर्म-निर्लज्ज को बेइज्जती की क्या परवाह ? अतः वह तो अपना क्रोध, घमंड आदि अधमताओं का प्रयोग करता ही रहता ।
१८५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org