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में मिलेगा।" क्या किया यह ? अश्व के मिस उन्हें आत्म-कल्याण में जोड़ दिया। पालक तो बड़े सबेरे उठ कर घोडे के लोभ से मुँह-अँधेरे प्रभु के पास पहुँचा और वंदना की । शांब सुबह जल्दी उठ कर शय्या से बाहर आकर 'रात्रि के समय जाना जीव हिंसा का निमित्त बनेगा' यह समझ कर वहीं रहा और उसने प्रभु को निर्मल निःस्वार्थ भाव से वंदना की । सुबह प्रभु से कृष्ण जी के पूछने पर प्रभु ने कहा कि 'भाव से शांब ने पहले वंदन किया, द्रव्य से पालक ने किया ।' अश्व शाम्ब को मिला।
आप को ऐसा करना आता है ? आता हो तो छोटे बच्चों को लालच देकर धर्म में जोड़ सकते हैं । बाद में आराम से बिठा कर समझाइये कि, "देखों ! हम तुम्हें अच्छी चीज तो यों भी ला दें, परन्तु तुमने जो सच बोला, देवदर्शन - पूजा की सामायिक किया, तप किया सो इस इनाम के लिये न करो तो तुम्हें इतना सारा पुण्य मिले कि जिससे यहाँ से मरने बाद तुम्हें अच्छी गति मिले । कुत्ते - बिल्ली न बनना पड़े। ऐसी समझ देने का बड़ा प्रभाव पड़ता है । और बच्चे लालच के बिना भाव पूर्वक धर्म करने लगे । आगे फिर यह कथा समझाइये कि राजा सिद्धराज के राजस्व की रकम से साजन मंत्री ने गिरनार के मंदिरों के भव्य जीर्णोद्धार किये। और बाद में राजा से पूछा कि 'आप को इसका पुण्य चाहिये या रकम ?' तो राजा ने कहा 'पुण्य ही चाहिए' धन तो छोड़ कर ही मरना पड़ता है, जब कि पुण्य तो परलोक में साथ आता है।' यह कथा समझाएँ तो बच्चों के मन में अच्छी तरह जम जाय कि 'धर्म का फल बाकी रखना, न कि उसका बदला (मुआवजा) यहीं माँग लेना ।' ___ संतान का आत्महीत साधा जाय ऐसा चाहते हों तो युक्ति पूर्वक काम लेना चाहिए । यहाँ मंत्रीने युक्ति से काम लिया तो राजा ने खुद कहा - "चलो, उस अशोक वृक्ष देखने पीछे के भाग में चले ।' मंत्री समझता है कि 'एक बार राजाको आचार्य भगवंत तथा मुनि महाराजों के दर्शन में तो जोड़ दे फिर आगे ज्ञानी गुरू सम्हाल लेंगे। सब लोग चले पीछे के हिस्से में, वहाँ राजा को थोड़ी ही दूरी पर देखने पर मुनिमहाराज दिखाई दिये ।
कैसे हैं वे मुनि महाराजः
धर्म के महासागर तुल्य, क्योंकि उनमें ५ महाव्रत, ८ प्रवचनमाताएँ, ५७ संवर, १२ तप, १० सामाचारी, ९ ब्रह्मचर्य-गुप्तियाँ, ५ पंचाचार, १० यतिधर्म आदि भरपूर भरा हुआ होता है अतः धर्म के महासागर के समान ही लगें न ? मुनि
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