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आज साधुओं तथा धर्म के खिलाफ कितना कुछ लिखा और बोला जाता है ? इस से दिल जलता है सही ? या जरूरत हो तो ऐसे को भी मीठा लगाते है, तदुपरान्त शायद समर्थन भी दिया जाता है ? तुम्हारे पिता की शानमें बुरा बोले तो ? कहो, कि आज तो वह भी चल लेना पड़े ऐसा जमाना आया है ।' क्यों भला ? क्या इसलिए कि वे लोग बाप की निंदा करते हैं परन्तु बेटे की तो प्रशंसा करते हैं न ? अर्थात् इसका तो यही अर्थ हुआ न कि तुम्हारे अपने विषय में अच्छा कहे वही भाता है फिर चाहे सगी माँ या बाप के बारे में बुरा कहे तो भी उसे सुन लेने में कोई हर्ज नहीं। जो सन्तान माता-पिता की निंदा सुनले वह देव गुरू की बुराई सुनकर क्यों भड़क उठेगा ? यह कैसा ज़माना है विकास का अधःपतन का ?
जमाने का असर ग्रहण मत करो:
बाहर कुछ भी क्यों न हो, पर यदि आपको आर्यत्व से प्रेम हो, आर्यदेश - आर्य कुल में जन्म लेने का अभिमान और आनन्द हो तो अपने घर में तथा अपने परिवार में जमाने का प्रवेश न होने दें। वरना आप कर्म द्वारा फेंक दिये जाएँगे बिखेर दिये जाएँगे | आपकी अपनी आत्मा धर्म का घर मिट कर पाप का घर बन जाएगी, जिन देव- गुरू धर्म के कारण आपकी रौनक - उज्ज्वलता है उन्हीं के प्रति विश्वासघात होगा । आज की जीवन पद्धति, आज के खानपान के तौर तरीके रहन-सहन वेशभूषा आदि भयंकर हैं । आर्यत्व एवं धर्म को भुला देनेवाले हैं । तथा पाप, बुद्धि पाप-भावनाओं एवं पापी वृत्तियों को जगाने और पोसने वाले है । करोड़ों भवों में भी दुर्लभ आर्य- मानव अवतार को पाकर उससे एकदम विपरित मार्ग पर गति होगी । देखा देखी कर के मरना ठीक नहीं है । पागल दुनिया को अच्छा लगाने और दुष्ट इन्द्रियों को बहलाने - बहकाने में आत्मा का सर्वनाश हो जाएगा ।
माली के मुख से आचार्य भगवंत का अपमान सुनकर मंत्री का सम्यग्दर्शन उसे बेचैन कर देता है । फिर भी उसे डाँट डपट कर भी, आचार्य भगवंत के आगमन के शुभसमाचार उससे मिलने के कारण पुनः उस की कद्र करता है; तुरन्त पुकारता है 'कौन है बाहर ?' उसी समय सिपाही उपस्थित होता है । मंत्री उससे कहता है ' इस माली को आधा लाख चमड़े के दीनार (सिक्के) दिला दो ।'
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रामजी श्रावक द्वारा शुभसमाचार का बड़ा उपहारः
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आप सोचते होंगे - “इतना सारा उपहार !' परन्तु क्या आप नहीं जानते कि आचार्य भगवान श्री हीर सूरीश्वर जी महाराज जब खंभात के बाहर आ पहुँचे
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