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और मूलतः इसका कथन करनेवाले सर्वज्ञ भगवान् के वचनों पर श्रद्धा होनी चाहिए | क्योंकि सर्वज्ञ ही यथार्थ ( वास्तविक ) चारित्र मार्ग दिखा सकते हैं ।
इस तरह, सम्यग्दर्शन भवनिर्वेद - अर्थात संसार पर विराग-भाव तथा सर्वज्ञ-वचन पर श्रद्धा चाहता है, श्रेणिक, कृष्ण महाराज आदि में ये दोनों थे ।
श्रेणिक विरागी कैसे?
भव-वैराग्य था इसलिए श्रेणिक ने अभयकुमार को राज्यधुरा- वहन सोंप कर निवृत्त होने की इच्छा से अमय को राज्य सम्हाल लेने को कहा । और अभयकुमार के सिवा दूसरा ऐसा योग्य सम्हालनेवाला नजर न आने पर भी जब अभयकुमारने संसार त्याग की अनुमति चाही तो श्रेणिक ने सहर्ष अनुमति दे दी । क्योंकि स्वयं भव वैराग्यवाले थे । संसार को एक भीषण कारावास और कतलखाना समझनेवाला व्यक्ति दूसरे को उसमे से छूट निकलने में विघ्न कैसे डाले ?
कृष्ण विरागी कैसे ?
कृष्ण महाराज (१) अपनी पुत्रियाँ वयस्क होने पर उन्हें समझा-बुझा कर संसारत्याग के मार्ग पर लगा देते थे । (२) थावच्चा पुत्र की दीक्षा के समय उन्होंने अपनी राजधानी में यह ढिंडोरा पिटवाया था कि जिस किसी को संसार - त्याग करना हो उसके पीछेवालों की चिंता जिम्मेवारी हम सम्हाल लेंगे। (३) अन्त समय में उन्होंने भी श्रेणिक की तरह अनुमोदना की थी कि 'धन्य है मेरे परिवार के लोगों को ! जिन्होंने संसार छोड़ कर प्रभु के पास चारित्र ग्रहण किया, और अपनी आत्मा का कल्याण साध लिया !
तात्पर्य श्राणक एवं कृष्ण दोनों की सर्वज्ञ वचन में श्रद्धा भी अद्भुत थी । राज्य शासन की खटपट सम्हालते हुए भी उनके हृदय में यह श्रद्धा का प्रवाह अजन बहता था। सर्वज्ञ भगवान के बताये हुए जीव-अजीव - आस्रव संवर वगैरह तत्त्वों पर उनको अटूट आस्था रहती थी फलतः आस्रवभूत राज्य, खजाना (कोष), सत्ता, परिवार आदि में आन्तरिक रूचि नहीं थी ।
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श्रेणिक की परिक्षा:
एक देव ने कसोटी करने के लिए राह जाते हुए श्रेणिक के आगे तालाब के किनारे साधु का रूप ले कर मछलियाँ पकड़ते होने का स्वाँग किया। श्रेणिक ने उससे कहा
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