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________________ सब कह दिया कि 'रानी हाथी पर जा रही थी, गर्भवती और शीघ्र ही पुत्र को जन्म देनेवाली हैं । आप पक्षपात करते है । इतने में वह स्त्री उपहार लेकर आयी और बुद्धिमान विद्यार्थी को तिलक कर श्रीफल देती है। गुरु ने पुछा, 'यह उपहार किस बात का ?' स्त्री ने कहा, “आप का यह शिष्य बहुत आयुष्मान हो कि इसके कहे अनुसार मुझे घर पहुंचने पर मेरा पुत्र परदेश से आया हुआ मिला ।" सुनते ही वह बुद्धिहीन विद्यार्थी चिल्लाया 'देखिये, यह भी एक उदाहरण है जो बताता है कि आपने इसे ऐसी विद्या अकेले में सिखायी है कि जिससे इसको ऐसा सब आता है । गुरु कहते हैं-'ऐसा कुछ नहीं है जो कुछ सिखाया है सौ मैंने तुम दोनों को साथ रखकर ही सिखाया है | तू भ्रम में मत पड़ । देख ! इस विद्यार्थी से ही स्पष्टीकरण माँगे कि इसे यह सब कैसे स्फुरित हुआ ?' विद्यार्थी ने किस आधार पर जाना ? विद्यार्थी से पूछने पर उत्तर मिला-'गुरुजी ! हम जंगल में होकर गुजर रहे थे, तब रास्ते में हाथी के पदचिह्न दिखाई दिये । इस से हाथी के जाने की बात जानी। फिर देखा तो रास्ते के एक ओर पेडों पर ही मुँह मारा हुआ दिखाई दिया, इस से कल्पना की कि हाथी एक आँख से काना होगा। आगे चल कर एक विशाल वृक्ष के नीचे विश्राम लेने बैठे तो वहाँ पास के छोटे पौधे पर रेशमी लाल तन्तु उलझे हुए देखे तब सोचा कि हाथी पर कौन जाता है ? नगर में राजा के यहाँ पर ही हाथी है, और रेशमी-लाल तन्तु कहीं राजा के पोषाख के नहीं हो सकते, अतः रानी की लाल साडी के ही होने चाहिए । और वह स्त्री वहाँ लघुशंका करने बैठी होगी, उस पर से भी स्त्री होने का जाना, तदुपरान्त वह स्त्री वहाँ से उठी होगी तब दाहिनी ओर हाथ का भार देकर उठी होगी सो उसका पंजा धूल में उठा हुआ दिखाई दिया । इस पर से सोचा कि यदि शरीर ही भारी - वज़नदार हो तो दोनों हाथ आगे टेक कर उठे, पर यह तो दाहिनी ओर ही पंजा दिखाई दिया इससे मालूम हुआ कि वह गर्भवती होगी सो भी गर्भ में पुत्र लिए हुए । फिर पंजा भी अच्छी तरह दबा हुआ था इससे कल्पना की कि रानी का प्रसव काल बहुत निकट का है । इस हिसाब से मैंने कहा कि, चल ! रानी हाथी पर बैठ कर गयी होगी और संभव है, उसने नदी किनारे पुत्र को जन्म दिया हो तो हमें दक्षिणा १४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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