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१३.चार प्रकार की बुद्धि ।
औत्पातिकी बुद्धि अर्थात् ऐसी बुद्धि कि जिससे मनुष्य हाजिर जवाब बनता है। (प्रत्युत्पन्न मतित्व) कोई भी प्रश्न, कोई भी समस्या, कोई गुत्थी, उसके सामने प्रस्तुत होते ही तुरन्त उसका समीचीन उत्तर, - स्पष्टीकरण, हल उसे स्फुरित होता है। उदाहरण के तौर पर, शास्त्र में आता है कि 'रोहा से राजा ने कहा, 'तू मेरे पास इस रह से आना कि, रात को नहीं, दिन को नहीं चल कर नहीं, वाहन में नहीं, छत्र के साथ नहीं, त्यों छत्र बगैर खुला भी नहीं। रोहा ने औत्पानिकी बुद्धि से बकरी पर सवार होकर सिर पर चलनी रख कर संध्या-समय आगमन किया । अकबर - बीरबल या भोज-कालिदास के जो चुटकुले - लतीफे आते है वे औत्पातिकी बुद्धि के उदाहरण हैं ।
वैनयिकी बुद्धि से तात्पर्य है - गुरू का विनय करते करते जिस अवसर पर जो उचित बुद्धि सूझे सो, जैसे कि शास्त्र में दृष्टांत आता है कि दो ब्राह्मण विद्यार्थी नदी को जा रहे थे । गाँव के बाहर जंगल से होकर जाना था। दोनों में से वैनायिकी बुद्धिवाले विद्यार्थीने जंगल के बीच में कहा, देखो, यहाँ से एक आँख से काने हाथी पर बैठ कर एक गर्भवती रानी गयी है और संभव है कि नदी किनारे उसके पुत्र जन्मा होगा, अतः जल्दी चलो, दक्षिणा मिलेगी।" जल्दी जल्दी गये और ठीक ऐसा ही हुआ था। दक्षिणा मिली। उसके बाद नदी किनारे एक स्त्री नदी में से घड़ा भर कर ज्योंही बाहर निकली कि तुरन्त ही किनारे पर पैर लड़खडाने से घडा गिर कर फूट गया । और पानी की धारा नदी में पहुँची । स्त्री रोने लगी। विद्यार्थियों के पूछने पर कहने लगी, “एक तो मेरा बेटा परदेश गया था उसका बरसों से पता नहीं है, मुश्किल से घर चलाती हूँ और अब यह घडा फूट गया । बिना बुद्धि का विद्यार्थी बोला, “तो अब इस घडे के फूटने पर से समझ ले कि तेरा बेटा भी मर गया। दूसरा जो वैनयिकी बुद्धिवाला है, कहता है ऐसी अपशकुनवाली बात मत कर ।' फिर उस स्त्री से बोला 'माँ! घर जाओ, तुम्हे अपना पुत्र अभी परदेश से आया हुआ मिलेगा ।' स्त्री अपने घर गयी, बाद में विद्यार्थी भी गुरू के पास पहुँच गये ।
उस रानी विषयक हकीकत बिल्कुल ठीक घटित हुई मालूम होने पर वह बुद्धिहीन विद्यार्थी गुरू के साथ झगड़ा करता है कि आपने इस दूसरे विद्यार्थी को अकेलेअकेले में बहुत बहुत सीखा दिया है इसी लिए इसने जंगल में बिना देखे ऐसे ही
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