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क्रीड़ा रत बालकों जैसे। और सांसारिक रिश्ते अर्थात बाल चेष्टा, इसी में मूढ बन कर जीव केवल यह सारा जीवन ही नहीं अपितु भव के भव (कई कई भव) बिता देता है । कहीं, कभी विचार तक नहीं करना? कहीं रूकना भी नहीं ?
महर्षि कहते हैं- 'हे कुमार ! ऐसे असार संसार में क्रोध, मान, माया, लोभ और मोह से मूढ मनवालोने और हसने भी जो अनुभव किया है सो सुनो ।'
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| महर्षि कथा कहते है:-
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वत्स नामक एक देश है। वहाँ देवताओं के से प्रासाद और मंडप सूचित करते हैं कि यहाँ के लोग पुण्य शाली हैं । उस देश में कोशाम्बी नाम की एक रम्य नगरी है; उसके आसपास किला है और किले के बाहर पानी की गहरी नहर बहती है। जैसे कि यह जम्बूद्वीप न हो जिसके चारों ओर जगत से घिरा हुआ और बाहर स्वच्छ जल है । वहाँ पानी के सरोवर ऐसे है कि जिनमें कमल न हो ऐसा है ही नहीं, और कमल ऐसे हैं जिन्हें सेवन करनेवाले हंस न हो ऐसा है ही नहीं ।
' नगर का पुरन्दर नामक राजा है । वह ऐसा परोपकारी है कि अनेकानेक दीनदुःखी जनों एवं अनेक पंडित पुरूषों के लिए विश्रामभूत है। राजा में और भी अनेक गुण हैं परन्तु एक ही बड़ी त्रुटि है कि उसे जिन-वचन पर श्रद्धा नहीं है। इस बातका उसके वासव नामक मंत्री को बड़ा दुःख है । क्यों कि वह औत्पातिकी, वैनयिकी कार्मिकी और पारिणामिकी - इन चार प्रकार की बुद्धि के उपरांत निर्मल सम्यक्त्व का धारक है ।
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