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कह कर चीखते रहने पर भी लेशभी छुटकारा या लेश भी सजा कम नहीं होगी? कवि कहते है:
'हांजी बलमदथी दुःख पामिया श्रेणिक वसुभूति जीवो रे जई भोगव्यां दुःख नरकतणां मुखे पाडतां नित्य रीवो (चीसो) रे....'
श्रेणिक और कष्ण महाराजा जैसे तीर्थंकर के जीव होते हुए भी आज नरक में पीड़ा से खूब चिल्ला रह हैं क्योंकि कर्म सत्ता की यातना से छुटकारा नहीं मिलता।
आज कत्लखाने में क्या अनार्य म्लेच्छों के घर में क्या और क्या अन्यत्र साइन्स के प्रयोगादि में, जीव दारूण दुःख भोग रहे हैं - सो क्या है ?
पूर्व काल में मानव के अवतार में अगणित पाापााचरण किये थे उनसे उत्पन्न कर्म सत्ताके ये चाबुक बरस रहे हैं ।
विश्व के जीव क्या कहते है ?
सुनने को कान हों तो विश्व के ये अत्यन्त दुःखी जीव मानों कह रहे हैं कि "भाई मनुष्यो । राह न भूलो ! हम भी एक दिन तुम जैसे मनुष्य थे। हमे साधु संत ना-ना कहते थे तो भी हम आँखे मूंद कर पापाचरण में डूबे रहे, खूब तीव्र अनुराग के साथ उछल उछल कर निरंकुश होकर विषयों का संग, आरंभसमारंभ, खान-पान और हिंसा परिग्रह आदि के पापों का सेवन किया, फलतः इस हालत में फँसना पड़ा है । अतः तुम चेतते रहना, हमारी तरह अविचारी साहस मत करना।'
वह युवक यदि एक राजसत्ता की गिरफ्त से नहीं छूट सकता तो कर्म-सत्ता की पकड़ में से कैसे छूट सकेगा ? उस युवक के सारे कपड़े खेंच कर निकाल लिये गये और उसे नग्न किया गया । सभा स्तब्थ हो गयी कि 'यह क्या ? स्त्री के कपड़ों में पुरूष ?
युवक को दारूण दंड:राजा युवक पर ताना कसता है कि, “क्यों ? तू सखी या सखा? हरामखोर!
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