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________________ कहता है 'अभी मुझे काम है इसलिए बाद में मिलूँगा । सिपाही ने कहा “नहीं, इसी वक्त चलना पड़ेगा ।" युवक बोला 'हमारा - स्त्रियों का वहाँ क्या काम है? इस वक्त नहीं आया जा सकता।" सिपाही बोला -“गड़बड़ नहीं । इसी वक्त चलना पड़ेगा । वर्ना पकड़ कर ले चलूँगा। अब क्या किया जाय ? फिर भी डूबते को तिनके का सहारा - इस तरह युवक कहता है, "ठहरे ! रानी साहिबा से पूछ लो ।" सिपाही कहता है - अरे, उनसे क्या पूछना है ? चलना है या नहीं ? वह न न कहता रहता है, और सिपाही लोग उसे पकड़ कर राज सभा में ले गये, सभा के बीच ला खड़ा किया। राजा ने पूछा - 'कौन है तू ?" : इसने कहा - 'मैं रानी साहिबा की सखी हूँ । राजाने कहा - 'सखी है या सखा ?' ज्योंही युवक ने कहा कि 'नहीं नहीं, मैं सखी हूँ ।' त्यों ही राजाने सिपाहीयों को हुक्म दिया कि “इसके सारे कपड़े उतार दो, नंगा करो, जिससे मालूम हो कि यह सखी है या सखा है।'' युवक के कपड़े उतरते हैं:. बस, खतम! युवक की हिम्मत काफूर हो गयी। कँपकँपी छुटने लगी, पर क्या करे ? यमदूतों जैसे सिपाहियों ने उसे घेर लिया । उसे पकड़े रखकर उसके कपडे उतारे । युवक की जराभी टस से मस होने की ताकत नहीं तो भागने की तो बात ही कहाँ ? किस अक्ल के बल पर उत्पात ?: राज-सत्ता जैसी एक मानवीय सत्ता की गिरफ्त से सरकना और भागना यदि असंभव है तो भला कर्म सत्ता की गिरफ्त से छूट सकना ? भाग सकना ? कैसे संभव होगा ? किस बुद्धि के सहारे आरंभ-समारंभ, इंद्रियों के रूप-रसादि विषयों के भोग, रूपये पैसे का परिग्रह, और खा-खा करने की निरंकुशता, और इन सब के पीछे राग-द्वेष-क्रोध-लोभ, ईर्ष्या-मद-प्रपंच आदि के पापाचरण आँख मूंद के कर रहे हो? क्या कर्म सत्ता छोडनेवाली है ? यह बेशुमार पाप-सेवन सब कियाकराया क्या यों ही चला जाएगा ? या कर्म-सत्ता की क्रूर पकड़ में से इस एकएक पाप के दारूण परिणाम को भोगे बिना नहीं छूटा जायगा ? 'बाप रे बाप' १२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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