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का वहाँ आना-जाना और अकार्य सेवन शुरू हो गया ।
कैसी विटंबना है मोह की ? रानी सचमुच उन्मार्ग पर जाना नहीं चाहती लेकिन युवक के प्रति मोह तथा शर्म के कारण वह कुमार्ग की ओर मुड़ जाती है। झूठी शर्म कैसा भुला देती है ? कर्म - सत्ता से माफी मिलती है क्या ? प्र० परन्तु हर्षोल्लास के साथ पाप न किया जाय उस का फर्क तो पड़ता होगा न ?
उ० अर्थात् क्या कहना चाहते हे ? पर स्त्री गमन और परपुरूष गमन के भयंकर अपराध का दंड नहीं मिलेगा ? यह अपराध ऐसा है कि अपने में अधमाधम राग जगे बिना होता ही नहीं । भले न शर्म से खिंचना पड़ा तो भी वहाँ लज्जा-दाक्षिण्य के कारण असत् कामराग भभक उठा और वह सदाचार की सीमा लांघ गया इसलिए भयंकर अपराध है । माफी नहीं मिल सकती । फलतः भवांतर में दुर्गतियों एवं कुअवतारों की परम्परा ! नपुंसकत्त्व ! खसीकरण ! मरे हुए बच्चे पैदा होना ! नीच गोत्र ! दौर्भाग्य ! अशाता ! वगैरह वगैरह कितनी ही भयंकर सजाए है और इस भव में भी भयंकर राज्य दंड, लोक निंदा, शत्रु का प्रहार आदि की संभावना है। इसके ही यहाँ भी ऐसा होता है वह कितना भयंकर है सो देखिये |
एक बार राजा ऐसे असमय में अनपेक्षित रूप से महल में आ गया जब वह युवक वहाँ आया हुआ था । दरवाजे बन्द हैं, राजा छिद्रमें से झाँकता है तो वह युवक स्त्री के वेश में क्रीडा करता दिखाई देता है । राजा स्तब्ध हो जाता है कि ‘यह क्या ?' उसे भयानक क्रोध आया । परन्तु वहाँ कुछ न कर के वह नीचे उतर कर बाहर आकर पहरेदार से पूछता है कि, “ऊपर कौन आया है ? और कितने समय से आता है ?"
सिपाही ने कहा, "वह तो रानी साहिबा की सहेली है और कितने ही समय से हर रोज आती है ।"
राजा ने कहा, अब वह जब बाहर निकले तब उसे पकड़कर राजदरबार में ले आना। देख, भूलना मत ! गफलत न हो, वरना तू अपनी बुरी हालत समझ लेना ।
सिपाही ने कहा, “जी हाँ हजूर । बराबर पकड़ कर ले आता हूँ ।
राजा गया राजसभा में । इधर वह युवक नीचे उतर, बाहर निकलता है कि दरवान कहता है, 'चलिये, आपको महाराज साहब बुलाते है ।"
वह घबराया कि 'न जाने राजा क्यों बुलाता है और क्या कुछ करेगा ?' अतः
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