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लौटा लाने के लिए क्या करना है ? उक्त जहरों को बाहर निकालने की कोई योजना की है? कुछ खर्च करना चाहते हो? नहीं, इसका कोई विचार ही नहीं करना है। कुछ करने की कोई आवश्यकता ही महसुस नहीं होती ! फिर चाहे ईसाई अपना प्रचार करें, आर्यसमाजी, बौद्ध, योगासनवाले और कानजी मतवाले तथा तेरापंथी सब अपना प्रचार करें 'हमें अपना कुछ करना कराना नहीं है यह मान्यता लेकर बैठ गये हो ! भविष्य का विचार है ? अपनी नाक रखने और दुनिया में नाम कमाने में हजारों रुपये व्यय करना जानते हो, पर सम्यग्ज्ञान फैलानेवाले साहित्य का प्रचार-प्रसार करने में कुछ खर्च नहीं करना है !
ठोस उपाय किये बिना नयी प्रजा का सुन्दर गठन-संस्करण नहीं होगा । कुमार कुबलयचंद्र सुगठित-संस्कारी है, इसलिए निर्भयता, सत्व, स्वस्थता आदि रखकर स्वयं को आकाश में उड़ा ले जाने वाला घोडा चोट खाकर गिरे तो गिरे, परन्तु स्वयं सही स्थिति मालूम करने का निश्चय करता है, कि, 'यह कोई गुप्त देव तो अश्वरुप लेकर नहीं आया है ?' अश्व को छुरी :
कुमार ने नीचे की ओर मुड़ कर घोडे के पेट में छरी भोंक दी । बस इतनी ही देर थी, छुरी भोंकते ही घोडे के पेट में से खून निकलने लगा, और घोडा सरसर करता नीचे गिर पड़ा। कुमार को आश्चर्य हुआ कि 'यह क्या ? यदि यह देव हो तो खून नहीं निकलता, और जानवर हो तो आकाश में नहीं उड़ता, क्या समझा जाय ?
कुवलयचंद्र वीरान वन में अकेला बिना संगी साथी के छूट गया है, पर उसे कोई डर नहीं आता, अथवा तुच्छ चिंता-संताप नहीं है कि हाय ! यहाँ मैं क्या खाऊँगा और क्या पिऊँगा।
जवाँमर्द का जिगर डरपोक नहीं होता और न तुच्छ संतापवाला ही होता हैं।
ऐसे भय-संताप तो कायरों को सोंप गये हैं। आपने कभी सोचा है कि कैसे जिगर का जीवन जीने में मजा, शाबाशी और अभ्युदय है ? कायर या शुरवीर ? कायर कलेजा रखने से क्या आपत्ति नहीं आती ? आ जाय तो सहनी नहीं पडती? क्या रोग-जरा-मृत्यु कुछ नहीं आता ? सब आता है, और सहना भी पड़ता है तब फिर कायरता रखने से क्या लाभ ? वीरपुरुष का कलेजा रखते हुए जीवन जीने की बलिहारी है। मन उत्साह उमंग में रहता है ! आपत्ति में मन धीर बना रहता है, जब कि बाकी सब में तो दृढ श्रद्धा है कि ललाट का लिखा ही होनेवाला है।"
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