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तरह जी सकेंगे? क्या यह जरूरी नहीं है ? केवल पैसा ही जरूरी है ?
ऐं, पैसे पहले जरूरी है।
या यह कुशलता सत्त्व, परोपकार वगैरह पहले जरूरी ? 'इन गुणों से रहित मनुष्य केवल रूपयों के बल पर तो कबूतरों की तरह कायर, मूढ और स्वार्थांध जीवन जीते हैं । या पिशाची-राक्षसी लीला खेलने वाला जीवन जीते है। अतः रूपये, पैसों की विद्या को महत्त्व न देकर इस कुशलता और गुणों की विद्याको महत्त्व देकर उसकी तालीम देने की जरूरत है, ऐसा हम कह सकते हैं? कहते हैं इसलिए कि -
(१) जिनेश्वर भगवान के शासन की सुन्दर आराधना करने के लिए गुण (२) साधना के लिए सत्व (३) आपत्ति में निर्भयता तथा (४) देव-गुरू की उपासना और धर्मानुष्टान में कुशलता और साथ ही (५) परोपकार बुद्धि
आदि बहुत आवश्यक है । ये हो तभी सुन्दर कोटि की आराधना होती है । जाँच करना -शायद आपकी आराधना में भी ऐसा जोश न दिखता हो और दुनियावी जीवन में भी ऐसा सत्त्व न दिखाई दे तो उसके मुल में सत्त्व आदि गुणों की कमी ही काम करती होगी । यह कमी भी बचपन से गुणों की शिक्षा नहीं मिली इस के कारण है । तो अब इन्हें कहाँ और कब प्राप्त करना ? लेकिन कम से कम संतान का तो ऐसा शिक्षण गठन करने की जिम्मेवारी सिरपर जरूर रखो।
प्र० परन्तु उनका शिक्षण-गठन करना कैसे ? स्कूल में वह सिखाया नहीं जाता। उ० यह तो आज का सत्य है - अतः घर पर उसका निर्माण करो |
(१) घरपर हर रोज का ऐसा कार्यक्रम रखो कि रात होनेपर सन्तान को छोटी उम्र से ही पास बैठा कर उसकी भाषा में ऐसी कहानियाँ कहना, ऐसे तत्त्व समझाना, ऐसे अनुभव देना ।
(२) साथ ही कभी कभी जिससे सत्त्व निडरता - कुशलता परोपकार विकसित हों इस तरह के कार्य में उन्हें जोड़ना । इस में पुस्तकीय पढ़ाई का नुकसान होगा ऐसा भय न रखना, नहीं तो निर्माण नहीं होगा।
ऐसे गठन बिना के कोरे शिक्षण का कोई अर्थ नहीं है | लडके में विनय-सेवा कृतज्ञता दाक्षिण्य आवें इस हेतु पिताको उसे माता के कार्य में भी जोड़ना चाहिए। तो ही उसका सुन्दर गठन हो, अन्यथा कोरा कोरा पढ़ पढ़कर वह उदंड
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