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________________ करती हैं। __ 'राजकुमार कुवलयचंद्र घोडे की खेल-अश्वक्रीडा बहुत सुंदर करेगा, और फिर महल में जाने पर वह मेरे आनंद-विनोद का कारण होगा।' राजा की ऐसी इच्छा कुमार का घोडा आकाश में उड जाने से घूल में मिल गयी और बड़ी भारी चिंता हुई। इच्छा-धारणा करो इस से कदाचित् उसके सिद्ध न होने का भय और इससे चिंता की आग सुलगने का भय खडा ही है । यह हुई इच्छानुसार न घटने की बात | इस में होनेवाली विटंबना को टालने के लिए मूल में धारणा-इच्छा का ही काट कर देना यह बात हुई.... पुण्य की कमी पर सुख का हक गलत है - अनचाहा बनने पर : अब, अनपेक्षित, अनचाहा हो जाने पर जो चिंता, शोक, उद्विग्नता होती है उससे बचने के लिए क्या करना इस का विचार करें। प्रतिकूल घटित हो जाय उसमें तो कुछ इच्छा करने की बात नहीं है, क्यों कि ऐसा कौन चाहेगा कि मेरे प्रतिकूल बन जाए ? बिना चाहे वह तो बन जाता है, और दिल का उद्वेग हो जाता है। उसे रोकने के लिए क्या करना ? (उसे कैसे रोकना) उद्वेग क्यों ? यहँ जाँच कीजिए कि उद्वेग क्यों होता है ? इस लिए होता है कि यह जो अनचाहा - प्रतिकूल घटित हुआ उसे अनुचित मानता है । किस लिए अनुचित है भाई ? जो कुछ प्रतिकूल हो जाता है वह अपने अशुभ कर्म बिना तो हो ही नहीं सकता | यदि अशुभ कर्म है तो प्रतिकूल का आगमन होगा ही । अनुकूल चल रहा था सो शुभ कर्म की धारा के प्रभाव से। उसमें कमी आई वह शुभ की धारा टूटी और अशुभ कर्म उदय में आये इसलिए अनचाहा, प्रतिकूल आ उपस्थित हुआ उद्वेग को टालने का विचार अब यदि यह श्रद्धा दृढ हो कि 'शुभ कर्म से अनुकूल की प्राप्ति होती है और शुभ के कच्चे पन से, अशुभ से प्रतिकूल की । तो प्रतिकूल घटित होने पर या अनुकूल अनपेक्षित रुप से रूक जाने पर मन को होगा कि 'मेरे शुभ कर्मों की निर्बलता से ऐसा ही होता | कोई फिक्र नहीं। पुण्य की दौलत कम हो तो सुख -सुविधा की सामग्री कम मिले यह स्वाभाविक है । तो जब मेरे पुण्य में कमी है तो इतने सुख या सुविधा की आशा क्यों रखनी चाहिए ? उस का हक किसलिए १०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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