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परलोक गमन क्या ?
(२) चैतन्य भत से भिन्न हो, तो भी काष्ठ में से प्रकटित ज्वाला की भाँति विनश्वर हो सकता है, नित्य नहीं, इसीलिए भी परलोक नहीं ।
(३) नित्य भी वस्तु यदि सर्वव्यापी हो तो इसे कहीं जाना नहीं होता, अतः परलोक गमन नहीं ।
(४) परलोक के रूप में नरक-स्वर्ग दीखते ही नहीं है, तब क्या परलोक? परन्तु परलोक है इसकी पुष्टि देखिये -
(१) पूर्व कथित अनुमानों से चैतन्य भिन्न स्वतन्त्र आत्मा का ही धर्म सिद्ध होता है भूतों का नहीं । जाति-स्मरणादि कारणों से सिद्ध होता है कि परलोक से आगत आत्मा है । यह द्रव्य से नित्य और पर्याय से अनित्य चेतन आत्मा है।
(२) एक' सर्वगतः निष्क्रिय आत्मा नहीं हो सकती, क्योंकि (i) रागद्वेष विषयकषायाध्यवसाय-शुभाशुभ भावना-नारकत्वादि कार्य भेद से भिन्न आत्माएं है; (i) शरीर में ही वे गुण दृष्टिगोचर होने से शरीर मात्र व्यापी है, (ii) और वह भोक्ता व गति-संचरणकर्ता होने से सक्रिय आत्मा सिद्ध होती है।
(३) प्रश्न - (अ) आत्मा यदि विज्ञानमय है, तो विज्ञान उत्पत्तिशीलता से अनित्य है जिससे आत्मा भी अनित्य रही, फिर परलोक किसका ?
(आ) यदि विज्ञान आत्मा से भिन्न हो तो आत्मा नित्य रह सकती है, परन्तु इसमें तो विज्ञान से भिन्न शुद्ध आत्मा का शुद्ध गगनवत् अथवा अज्ञान काष्ठवत् परलोक कैसा ? नित्य में यदि कर्मकर्तृत्त्व-भोत्कृत्त्व हो, तो सदा कर्तृत्वादि चलते ही रहें! परन्तु ऐसा तो है नहीं । इसलिए आत्मा अनित्य है । ऐसे अनित्य में परलोक कैसे घटित हो ?
उत्तर - विज्ञान में उत्पत्तिशीलता से नित्यता भी सिद्ध कैसे न होगी ? आश्चर्य होगा उत्पत्तिमान और नित्य ? हां, घड़े में भी अकेली अनित्यता नहीं है, परन्तु नित्यता भी है, क्योंकि घड़ा क्या है ? अकेला आकृतिरूप नहीं, परन्तु रूप, रस, गन, स्पर्श, एकत्व, तूम्बाकार आकृति, जलहरणादि शक्ति आदि का घन है । पूर्व के मिट्टी के पिंड में भी यह रूपादि था, मात्र आकृति और शक्ति नहीं थी । इसका अर्थ यह कि घड़ा रूपादि रूप से नवनिर्मित नहीं परन्तु ध्रुव है, और नवीन आकृति शक्ति रूप में उत्पन्न है । अब मिट्टी का पिंड़ अपनी आकृतिशक्ति के रूप में नष्ट है । यही घड़ा भी श्याम आदि पूर्व पर्यायरूप से नष्ट भी होता है । इस प्रकार घड़ा ध्रुव और उत्पन्न-विनष्ट अर्थात् अध्रुव, यानी नित्यानित्य सिद्ध होता है । इसी प्रकार सभी द्रव्य
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