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( ४ ) यहाँ के जैसा भवांतर ऐसा कहते हो परन्तु भवांतर के लिए अकेला यह भव ही बीज नहीं है, परन्तु शुभाशुभ क्रिया सहित भव यह बीज है । मनुष्य विचित्र क्रियाएँ करते हैं वे निष्फल न जाएँ अतः उनके फल रूप में विचित्र भवांतर मानने ही पडे ।
(५) प्रश्न
खेती आदि क्रियाएँ तो प्रत्यक्ष फल देती है, परन्तु हिंसाज्ञानादि क्रियाएँ तो मनोरुचि के अनुसार ही होने से निष्फल ही हैं । फिर असमान भवांतर कैसे ?
उत्तर - यदि हिंसा - ज्ञानादि क्रियाएँ निष्फल हो तो (i) कृतनाश - अकृत - आगम की आपत्ति, अर्थात् की गई क्रीया तो बिना फल यों ही नष्ट होने की आपत्ति; और आगे जो भला-बुरा फल मिलता है वह ऐसे ही अर्थात् पूर्व में अ-कृत यानी कुछ किए बीना आकस्मिक आगमन रूप होगा !
(ii) भवांतर ही न होगा ! क्योंकि जगत में भव का कारण कर्म है और इस क्रिया से कर्म होना तो तुम्हें मान्य नहीं । फिर भव ही नहीं तो समान भवांतर की भी बात कहां रही ? फिर भी हो तो कृत का आगमन हुआ । इस प्रकार भव से भव, भव से भव, भव... इस तरह चलता ही रहेगा, और मोक्ष कभी नहीं होगा। क्योंकि आप को तो भव के प्रति पूर्व भव ही कारण है ।
( ६ ) प्रश्न मिट्टी में से स्व स्वभाव में अनुरूप कार्य घड़ा होता है, इसी प्रकार इस भव में से स्व स्वभाव से अनुरूप समान भवांतर होना चाहिये ।
उत्तर - घड़ा भी कर्ता, करण आदि की अपेक्षा रखता है, इस प्रकार यहाँ भवांतर भी जीव कर्म आदि की अपेक्षा रखता है । 'बिना कर्म के स्वभाव से होता हो,' तो भवांतरीय शरीर यह मेघ आदि की भाँति अनिश्चित आकारवाला होगा, निश्चित आकारवाला कैसे ?
(७) 'यह भव वैसे स्वभाव से ही समान भवांतर करता है' ऐसा अगर कहो, तो यह बताइये 'स्वभाव' क्या वस्तु है ? क्या वस्तु का स्वभाव यह (१) वस्तु रूप है ? अथवा (२) निष्कारणता रूप है ? या ( ३ ) वस्तुधर्म रूप वह होता है ?
प्रस्तुत में ( १ ) 'वस्तु' रूप में यह भव लो, तो भवांतर के पहले ही वह तो नष्ट हो चुका, फिर भवांतर में स्वभाव रूप से वह कारण कैसे ? वस्तु-रूप में यदि कारण पकड़ो तो वह अपने प्रति कारण कैसे हो सकता है । (२) निष्कारणता कहते हो तो उसमें तो यह आया, कि 'भवांतर निष्कारणता से इस भव के समान होता है । यों जब निष्कारणता ही भवांतर में प्रयोजक है, तब तो ये प्रश्न होते हैं कि (i) भवांतर
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