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________________ (७) अत: कहो कि वस्तु में सापेक्ष निरपेक्ष दो प्रकार के स्वरूप हैं; इन में सत्ता-सत्व, रूप, रस आदि निरपेक्ष स्वरूप है। इस प्रकार वस्तु स्वत: सिद्ध, स्वतन्त्र ज्ञेय है, इसका परनिरपेक्ष स्वतः ज्ञान होता है। फिर जिज्ञासा वश प्रतिपक्ष के स्मरण से हस्व दीर्घादि सापेक्ष रूप में जाने जाते हैं । इस प्रकार जहाँ वैसे निरपेक्ष ज्ञान से और निरपेक्ष व्यवहार से सत्तादि स्वरूप स्वतः सिद्ध हों वहाँ सर्व शून्य कहाँ रहा ? (८) अगर सत्ता स्वत: सिद्ध न हो तो हस्व वस्तु की सत्ता भी परसापेक्ष ही होगी। इससे तो जब ज्ञान में पर दीर्ध की अपेक्षा न रही जैसे कि 'यह अंगुली है' इतना ही ज्ञान किया तब हस्वसत्ता नष्ट ! यह नष्ट, तो दीर्घसत्ता भी तत्सापेक्ष होने से नष्ट ! अर्थात् सर्व नष्ट ! परन्तु ऐसा दीखता नहीं है। अपेक्षा रहित काल में भी हस्व अथवा दीर्घ वस्तु तो यथावत् विद्यमान ही है और दीखती ही है। इससे स्वतः सिद्ध सत्ता की सिद्धि होती है । (९) सब असत् हो तो हस्व दीर्घ की अपेक्षा भी असत् ठहरेगी ! तो व्यवहार कैसे चले ? प्रश्न - ऐसा स्वभाव है कि 'अपेक्षा से हस्व दीर्घ व्यवहार होता है' स्वभाव में प्रश्न नहीं हो सकता । उत्तर - अच्छा । तब तो यह स्वभाव अर्थात् 'स्व का भाव पर का नहीं' इससे स्वभाव, स्व, पर, ऐसा अलग अलग स्वीकार करने से वे सत् होगें ! फलतः सर्व शून्यता का भंग ! (१०) अपेक्षा रखने की क्रिया, अपेक्षा करने वाला पुरुष, और अपेक्षणीय कर्म, अपेक्षणीय विषय, ये यदि असत् हो तो प्रति व्यक्ति नियत विशेष ही न रहें कि 'यह तो पुरुष है, विषय नहीं'। अगर सत् हो तो सर्वशून्यता का भंग । (१) वस्तु परस्पर सापेक्ष नहीं :सारांश, जगत में वस्तु ४ प्रकार की होती है : १. स्वतः सिद्ध - बिना कर्ता के बनने वाले मेघादि विशिष्ट परिणाम । २. परतः सिद्ध - कुम्हार आदि से बनने वाला घडा आदि। ३. उभयतः सिद्ध - माता पिता और स्वकर्म से होने वाले पुत्रादि; तथा ४. नित्य सिद्ध - आकाशादि । यह 'सिद्ध' अर्थात् उत्पत्ति की दृष्टि से । ज्ञान की दृष्टि से सिद्ध जैसे कि घड़ा स्वतः सिद्ध है; व हस्व-दीर्घत्वादि परतः सिद्ध अर्थात् परत: ज्ञात है। सर्व शून्य में यह व्यवस्था घटीत नहीं होती। (२) वस्तु और अस्तित्व का सम्बन्ध :(१) प्रथम तो 'घड़ा है, अस्ति,' पर 'नहीं ऐसा नहीं' इस प्रकार घड़े को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003226
Book TitleGandharwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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