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देने पर स्वयं को भी दुःख मिलता ही है; भले इस जीवन में नहीं तो यहाँ से बाद के जीवन में; किन्तु दुःख तो अवश्य मिलता है । अतः दूसरों को दुःख न पहुँचाते दया करनी चाहिए ऐसा सिद्ध होता है । दान देना भी कर्तव्य है; क्योंकि यहाँ दिया हो तो परभव में मिलता है। इस प्रकार इन्द्रियों का दमन भी करना ही चाहिये; जिससे ये उच्छृखल बन कर आत्मा को तामस भाव में डुबो, पाप कर्मों से बांध कर भवांतर में निम्न कोटि के कीट आदि भवों के, या नरक के दुःखों में तंग नहीं करें। इस प्रकार 'द द द' का पालन तभी सार्थक माना जा सकता है कि यदि आत्मा जैसी देह से भिन्न वस्तु जगत में हो ।
अब जगद्गुरू प्रभु महावीर देव आगे फरमाते हैं, - 'हे गौतम इन्द्रभूति ! "विज्ञानघन एव एतेभ्यो भूतेम्यः समुत्थाय तान्येवानु विनश्यति न प्रेत्यसंज्ञाऽस्ति !" इस वेद पंक्ति का अर्थ तू इस प्रकार गलत बताता था कि 'विज्ञानघन' पद के साथ जो 'एव' पद लगा हुआ है, उसे तूने 'भूतेभ्यः' के साथ लगाकर 'पंचभूत से ही आत्मा उत्पन्न होती है' ऐसा अर्थ लगाया; परन्तु सही तरह से वेदपंक्ति में 'एव' पद जहाँ रक्खा हुआ है वहीं लगाने का है जिससे सही अर्थ इस प्रकार निकलेगा :
'विज्ञानघन एव' अर्थात् विज्ञान का घन ही, विज्ञान अर्थात् विशेष ज्ञान, उपयोगरूप यानी स्फुरणरूप ज्ञान, परन्तु मात्र ज्ञानशक्ति, ज्ञानलब्धि नहीं । यह ज्ञान गुण आत्मा के स्वभाव रूप है, अतः वह आत्मा के अभेद भाव से होता है और इसीलिए आत्मा उन उन के ज्ञान उपयोगमय बनती हैं, अर्थात् ज्ञान का एक घन ही आत्मा बना । विज्ञान के साथ गाढ़ सम्बन्ध आत्मा का बनता है, इससे भी आत्मा विज्ञानघन कहलाती है।
यहाँ विज्ञान पृथ्वी, पानी आदि भूतों को लेकर उत्पन्न होता है, अर्थात् ज्ञान घड़े का होता है, वस्त्र का होता है, जल का होता है; अतः कहा जाता है कि ज्ञान पृथ्वी आदि विषयों से उत्पन्न हुआ; और आत्मा में अभेद भाव से ज्ञान उत्पन्न हुआ। इसका अर्थ यह हुआ कि नये नये ज्ञानस्वरूप आत्मा का उन उन ज्ञानों को लेकर जन्म हुआ, क्योंकी ज्ञान-आत्मा का अभेदभाव है जैसे अंगुली सीधी हो उसे यदि टेढ़ी की जाए तो उसमें टेढ़ेपन की उत्पत्ति हुई; परन्तु टेढ़ापन अंगुली में अभेदभाव से है। टेढ़ापन अंगुली से बिल्कुल भिन्न ही नहीं, परन्तु अंगुली स्वरूप भी है। इससे ऐसा कहा जाता है कि अंगुली स्वयं टेढ़ी हो गई । यहाँ 'हो गई' अर्थात् जन्मी, जन्म पाई, जिससे 'टेढ़ेपन वाली अंगुली हुई' अर्थात् टेढ़ी अंगुली का जन्म हुआ ऐसा कहा जाता है। इसी प्रकार ‘ज्ञान उत्पन्न हुआ' अर्थात् 'विज्ञानघन आत्मा का जन्म हुआ,' ऐसा कह सकते हैं । तो इससे यह हुआ कि पृथ्वी आदि भूतो से विज्ञानघन का
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