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________________ इष्ट घड़े के लिए वह मिट्टी में प्रवृत्ति करता है। यह सूचित करता है कि इष्टानिष्ट की प्रवृत्ति-निवृत्ति के लिए इष्टानिष्ट का साधनस्वरूप ज्ञान तो होना ही चाहिये । नवजात शिशु को इष्टतृप्ति के लिए स्तनपान में प्रवृत्त बनाने के लिए आवश्यक 'यह स्तनपान इष्ट साधन है' ऐसा ज्ञान कहाँ से हुआ ? कहेंगे 'माता करवाती है', पर नहीं, वह तो बालक के मुँह मे मात्र स्तनमुख रखती है, बस इतना ही; पर चूसने की क्रिया किसने सिखाई ? मुख स्याही-सोख अथवा लोहचुम्बक जैसा नहीं है जो स्वभावतः चूसे । यदि ऐसा हो तो बालक तृप्त होने के पश्चात् उसे स्वतः कैसे छोड़ देता है ? इससे आप को कहना ही पड़ेगा कि स्वभावत: नहीं किन्तु ज्ञान व इच्छा होने पर स्तनपान में प्रवृत्त होता है। यह स्तनपान तृप्ति का साधन होने का ज्ञान पूर्व जन्म के संस्कार से होता है। इस संस्कार के लिए अनुभवकर्ता के रूप में इसकी आत्मा को ही मानना चाहिये । अन्यथा संस्कार का आधार कौन ? शरीर तो जड़ है, व नया जन्म हुआ है । इसे पूर्व संस्कार से क्या लेना देना ? और इसे इष्टानिष्ट का भी भान क्या ? शरीर को यदि भान हो तो पहिले खीर खाए और फिर कढ़ी पीए और इस प्रकार दोनों को पेट में इकट्ठे करे क्या ? पेट में अलग अलग भाग है क्या ? नहीं, परन्तु वहाँ आत्मा का बस चलता नहीं, अत: उसे यह सब सहन करना पड़ता है, और मुँह में उसका चलता है अत: दो डाढों में भिन्न भिन्न वस्तुएँ चबा सकता है। यह जड़ देह की नहीं पर चेतन आत्मा की कार्यवाही है । (१३) इसी प्रकार एक ही माता-पिता के दो पुत्रों में - युगल में भिन्न भिन्न स्वभाव, आदत, सोक, रुचि, रागादि पाये जाते हैं; पर ऐसा क्यों ? जब कि जनकजननी वे ही हैं ? इसी तरह एक थोडी शिक्षा से सीखता हैं, थोडे उपदेश से समझ जाता है, और दूसरा नहीं, ऐसा क्यों ? एक देवदर्शनादि में असीम आह्लाद का अनुभव करता है जब कि दूसरे को उनमें मन्द रुचि होती है ऐसा क्यों ? वहाँ का वातावरण तो एकसा है फिर यह भेद क्यों ? स्पष्ट है कि पूर्व जन्म के तदनुकूल विचित्र संस्कार और उनकी न्यूनाधिकता के कारण ऐसा होता है । (१४) जीवन में दिखाई देने वाले मन-वचन-काया के योग, पुरुषार्थ, इच्छा, प्राण, ज्ञान-दर्शन का उपयोग, क्रोध, मान, माया, लोभ, कषाय, कृष्ण लेश्यादि लेश्याएँ, आहारविषय-परिग्रह-भय की संज्ञाएँ, राग-द्वेष-हर्ष, उद्वेग, शोक, व्याकुलतादि अशुभ भाव, क्षमा, मृदुतादि और अहिंसा, सत्य, संयमादि शुभ भाव, - ये सब किस के धर्म है ? जड़ शरीर के नहीं, क्यों कि शरीर एकसी स्थिति में रहने पर भी उनमें परिवर्तन होते रहते हैं, घड़ी भर प्रत्यक्ष, तो घडी भर अनुमान, अभी राग, तो थोडी देर में द्वेष, अभी अभी व्यापार का लोभ, परन्तु जरा सी उथलपुथल सुनते ही शांति, - यह सब परिवर्तन कौन लाता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003226
Book TitleGandharwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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