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ऐतिह्य प्रमाण :- ऐतिहासिक प्रमाण में दंतकथादि आती है जैसे किसी जीर्ण मकान में वर्षों से भूत का निवास है इस प्रकार परंपरा से लोग जानते चले आ रहे हैं। ऐतिह्य प्रमाण से वंश परंपरा तक यह बात चली आती है, परन्तु आत्मा के संबंध में ऐसी कोई कहावत प्रचलित नहीं है, क्योंकि कोई ऐसा अमर शरीर दिखाई नहीं देता जिसमें आत्मा का निवास होने की कहावत वंश परंपरा से चलती हुई आज मिलती हो।
प्रश्न - आत्मा को मानने वाले अमुक वर्ग में तो परम्परागत ऐसी कहावत चली आ रही है कि शरीर में भिन्न आत्मा होती है - ऐसा क्यों ?
उत्तर - यह प्रचार सर्वलोक में सिद्ध न होने से प्रमाणभूत नहीं माना जा सकता । साथ ही अमुक वर्ग में ही प्रचलित कितनी ही दन्तकथाएँ अप्रामाणिक अर्थात् मिथ्या भी होती है। अतः ऐतिह्य प्रमाण से आत्मा की सिद्धि नहीं होती ।
तो अब रहा -
आगम प्रमाण - शब्द प्रमाण :- उपरोक्त अनेक प्रमाणों में से एक भी प्रमाण जिसमें घटित न होता हो ऐसे भी पदार्थ की सिद्धि में आगम अर्थात् आप्त (विश्वसनीय) पुरुष के वचन रूपी शब्द प्रमाण घटित हो सकते है। जैसे पिता के वचन मात्र से पुत्र ने जाना कि उसके दादा अमुक है । इसी प्रकार चन्द्र-ग्रहण, चन्द्र-उदय, सूर्यग्रहण आदि ज्योतिष शास्त्र से सिद्ध होते हैं । इनमें पहिले से प्रत्यक्ष, अनुमान आदि प्रमाण घटित नहीं हो सकते । अब आत्मा के संबंध में चाहिए तो इसकी पुष्टि में शास्त्र तो मिलते हैं, परन्तु शास्त्र आत्मा के संबंध में अनेकानेक परस्पर विरोधी बातें करते हैं; जैसे :- कोई कहता है कि 'आत्मा एक ही है' तो कोई कहता है 'आत्मा अनंत है' फिर कोई आत्मा को क्षणिक ही मानता है तो कोई नित्य ही मानता है । ऐसी स्थिति में कौन सा शास्त्र मानें और कैसी आत्मा सिद्ध हो ?
यहाँ तक ‘आत्मा नहीं' यह सिद्ध करने का प्रयत्न हुआ अब आत्म तत्त्व सिद्ध करने की विचारणा की जाती है। 'आत्मा है' इसके प्रमाण :
__ आत्मसिद्धि में प्रत्यक्ष प्रमाण :- (१) सर्वज्ञ आत्मा को प्रत्यक्ष देखते हैं। जिस प्रकार किसी मनुष्य के आंतरिक संदेह विकल्प इन्हें प्रत्यक्ष होते हैं और अवसर पर व्यक्त किये जाते हैं और वे मान्य होते हैं, इसी प्रकार इन्हें प्रत्यक्ष होने वाली आत्मा मान्य होनी चाहिये ।
(२) अपने प्रत्यक्ष प्रमाण से भी आत्मा इस प्रकार सिद्ध होती है कि हमें
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