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११ संदेह :- ११ ब्राह्मणो में (१) इन्द्रभूति गौतम को जीव का संदेह था। 'जगत में स्वतन्त्र सनातन आत्मा जैसी वस्तु है या क्या ?' ऐसी शंका इनके मन में थी । (२) ब्राह्मण पंडित अग्निभूति गौतम को कर्म का संदेह था, अर्थात् 'जीव ही का किया हआ काम होता है या कर्म का किया हुआ? कर्म-सत्ता जैसी भी कोई वस्तु होती है क्या?' ऐसी शंका थी। (३) वायुभूति गौतम के मन में 'तज्जीव तत् शरीर अर्थात् यह देह ही जीव है अथवा जीव देह से भिन्न है ?' - ऐसी शंका थी। ये तीनों ब्राह्मण भाई थे और प्रत्येक के साथ ५००-५०० विद्यार्थियों का परिवार था । (४) व्यक्त पंडित को पांच भूत के विषय में संदेह था, अर्थात् 'पृथ्वी, पानी आदि जो पांच भूत जगत में माने जाते हैं वे सत्य हैं अथवा स्वप्नवत् ?' ऐसी शंका थी । (५) सुधर्मा विद्वान् को संदेह था कि 'जीव यहाँ जैसा होता है वैसा ही दूसरे भव में भी होता है अथवा भिन्न होता है?' इन दोनों के पास भी ५००-५०० विद्यार्थी थे । (६) मंडित ब्राह्मण को बंध के विषय में शंका थी। इन्हें होता था 'क्या जीव सदा शुद्ध बुद्ध तथा मुक्त रहता है अथवा इस पर किसी प्रकार का बंधन लगता है? और फिर उपाय से मुक्त बनता है?' (७) मौर्यपुत्र को देव का संशय था । 'स्वर्ग जैसी कोई वस्तु भी होती है क्या ?' दोनों के पास ३५०-३५० विद्यार्थी पढ़ते थे। (८) इसी प्रकार अकंपित के मन में नरक के विषय में शंका थी । (९) अचल भ्राता को पुण्य के विषय में शंका थी । 'पुण्य कोई स्वतंत्र वस्तु है अथवा पाप के क्षय को ही पुण्य कहते हैं ?' (१०) मेतार्य को परलोक के विषय में शंका थी। और (११) प्रभास नामक विद्वान् को मोक्ष के विषय में शंका थी । 'क्या मोक्ष जैसी कोई निश्चित स्थिति है ? क्या अनंत शाश्वत आत्म-सुख है ? या संसार पूर्ण होने पर जीव का क्या सर्वथा नाश हो जाता है ?' आदि इनकी शंकाएं थी। इनमें से प्रत्येक के पास ३००-३०० विद्यार्थी थे ।
। देवता
११ गणधर और उनके संदेह १. इन्द्रभूति आत्मा ७. | मौर्यपुत्र २. अग्निभूति कर्म ८. अकंपित । नारक ३. वायुभूति शरीर ही जीव | ९. अचलभ्राता| पुण्य - पाप ४. व्यक्त पंचभूत १०. मेतार्य | परलोक ५. सुधर्मा सदृश जन्मान्तर ११. प्रभास । मोक्ष ६. मंडित बँध - मोक्ष
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