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________________ पुण्यपाप अरुपी क्यो नहीं ? कारण के समानासमान स्वपर पर्याय मूर्त ब्राह्मी का अमूर्त ज्ञान पर प्रभाव अकेले पुण्य के अति ह्रास से दुःखोत्कर्ष न बने निश्चय से मिश्रयोग नहीं होता:, संक्रम में मिश्रित योग नहीं: पुण्य की ४६ प्रकृतियां मेतार्य दशवे गणधर : परलोक हैं क्या ? परलोक की युक्तिया, घडे में नित्य - नित्यता : जो उत्पत्तिमान हो वह नित्य नहीं होता । उत्पाद-व्यय-' - ध्रौन्य 1 ग्यारहवे : गणधर प्रभास मोक्ष है ? दीपक के पीछे अंधकार : पुद्गल-प्रयोग से स्वर्ण मिट्टी का वियोग : नारक तिर्यचादि ये जीव के पर्यायमात्र जीव कर्म से सर्जित नहीं । धर्म - १ सहभू, २ . उपाधि-प्रयोज्य । अनादि भी राग द्वेष का नाश विकार, १. - निवर्त्य २. अनिवर्त्य, 'अशरीरं वा वसंत' का अर्थ, मोक्ष में ज्ञान की सत्ता ज्ञान सर्व विषयक क्यों ? मोक्ष में सुख कैसे ? विषय सुख - रति अरति का प्रतिकार मात्र संयोग तक सुख क्यो नहीं ? संसारसुख सांयोगिक-सापेक्ष - विपाककटु ११ को त्रिपदी और गणधर - पद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003226
Book TitleGandharwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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