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पाचवें गणधर :
सुधर्मा
परभव समान या असमान ?
असमान के तर्कः द्रव्ययोग से भी सर्प -सिंहादि :
भव का बीज कर्म, पर भव नहीं
हिंसा दानादिः के फलभेदः 'स्वभाव से भवान्तर'
वहां स्वभाव क्या ?
वस्तु के समानासमान पर्याय
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छठ्ठे गणधर : मंडित
आत्मा के बन्ध मोक्ष हैं ?
जीव और कर्म में प्रथम कोन ? अगर साथ तो अनादिका नाश नहीं ।
भव्यत्व क्या ? संसार खाली क्यों न हो ?
आत्मा सर्वगत हो तो क्रिया अघटित
अलोक - धर्माधर्म की सिद्धि मोर्य -
-पुत्र
सातवे गणधर : देवता हैं क्या ?
समवसरण में ही प्रत्यक्ष : ज्योतिष्क विमान :
माया रचना करने वाले ही देवः उत्कृष्ट पुण्य का फल, जातिस्मरण वाले का कथन
विद्यामंत्र : भूताविष्ट: देव के आने न आने के कारण । आठवें गणधर अकंपित
नारक है क्या ?
इन्द्रिय - प्रत्यक्ष वस्तुतः प्रत्यक्ष नहीं
उत्कृष्ट पाप का फल कहां ?
नौवें गणधर : अचलभ्राता
क्या पुण्य पाप है ?
१. अकेला पुण्य, २. अकेला पाप,
३. मिश्र, ४. स्वतन्त्र उभय,
५. एक भी नहीं मात्र स्वभावका कारण ।
१, २, ३, ५, ये चार विकल्प गलत कारणानुमान - कार्यनुमान ।
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