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निराशा का बीज है। 40
इत्र के हर कतरे में गुलों को शहीद होते देखा...
नन्हें-नन्हें बीजों में वटवृक्षों को सोते देखा... स्नेहभरी निर्मल आँखों में सुंदरता का मेला देखा... जहरीले शब्दों से टूटते दिल के शीशमहल को देखा... शंकाओं के विषयूंट में दीर्घ प्रम का विलय देखा...
आशा के कच्चे धागों से जीव हजारों बँधे देखा... बिना आश के मस्त फकीरी-अवधूत कोई विरला देखा..
आशा का अस्त, आदमी मस्त, किंतु आदमी तो त्रस्त है, क्योंकि वह आशा से ग्रस्त है... आशा की बाढ़ से बचें... आशा को एक नयी दिशा... नया आयाम प्रदान करें...
आत्म समाधि में निमग्न निरंतर अवधूतावस्था पाने का यह ही एकमात्र उपाय है... आशा निराशा का हंद शांत हो और शेष हो केवल असीम... अक्षय... अक्षत... शांति.... यह शांति हमें प्रदान करे...
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